________________
३२४
महाप्रज्ञ-दर्शन
० रागोद्भवाश्च
जो विचार रागात्मक भाव की प्रेरणा से प्रेरित होकर आता है उसे रोकना
०
० विकल्पाश्च
मन में जितने विकल्प होते हैं उतना ही मन अशान्त होता है मनसोऽतिचपलता च
मन की ज्यादा गति ही मन की अशांति है। ० सा च मोहविपाकोद्भवा ० श्वासजन्या च
चंचलता के दो हेतु हैं-श्वास और मोहकर्म का विपाक। श्वास बाहरी कारण है और मोहकर्म का विपाक भीतरी कारण है। जब भीतर में मोह के परमाणु सक्रिय होते हैं तब चंचलता बढ़ जाती है। यह चंचलता नाड़ी-सस्थान में अभिव्यक्त होती है। नाड़ी-संस्थान की चंचलता के लिए प्राण का चंचल होना जरूरी है और प्राण की चंचलता के लिए श्वास का चंचल होना जरूरी है। काम, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, अहंकार आदि की तरंगें श्वास की चंचलता के बिना नहीं उभरती हैं। ० अपरिष्कृतेच्छा च
दूसरों को क्षति न पहुँचायें । इच्छा के परिष्कार के बिना सभ्य समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
___ कभी-कभी परिष्कृत इच्छाएं भी खतरा पैदा कर देती हैं। समाज द्वारा यह मान्य है कि पति-पत्नी का संगम हो सकता है। यह व्यक्ति की परिष्कृत इच्छा का नियमन है किंतु आदमी यदि इसको सर्वमान्य बनाकर इच्छापूर्ति करता चला जाए तो वह वासना के भंवर में गिरकर अनेक रोगों का शिकार हो सकता है। उसकी सारी कर्मजा शक्ति नष्ट हो सकती है।
इसलिए परिष्कृत इच्छा का भी संयम और अनुशासन आवश्यक होता
० रागश्च
आवेगों को मिटाने का उपाय न करके उसके मूल प्रियता को मिटायें तभी समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है। ० अतिचिन्तनञ्च
मानसिक तनाव का एक कारण है-अधिक सोचना। हम उतना ही सोचें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org