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________________ अन्तरायाधिकरणे शारीरिकबाधापदः ३२१ ० अपानवायुविकृतिश्च अपानवायु के विकृत होने से मन में अप्रसन्नता होती है और उसकी शुद्धि से प्रसन्नता होती है। ० व्यवस्थाभावश्च ० समन्वयाभावश्च जहाँ व्यवस्था का अभाव है, वहां लड़ाई-झगड़े का अवतरण निश्चित है। जिस परिवार का मुखिया समझदार होगा, वह व्यवस्था पर सबसे पहले ध्यान देगा। व्यक्ति समझौता करना नहीं जानता है तो छोटी भी घटना भी गांठ बन जाती है। जब तक गांठ खुलती नहीं, समस्या सुलझती नहीं है। समझौते के बिना दुनिया में कभी काम नहीं चलता। ० असहिष्णुता च सामंजस्य, समझौता और व्यवस्था-इन तीनों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सूत्र है-सहिष्णुता। यह अहिंसा, पारस्परिक सौहार्द और शांत-सहवास का आधार बनती है। जब तक सहिष्णुता का विकास नहीं होता, तब तक शांत-सहवास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ० कलहश्च ___ कलह के अनेक कारण हैं। उनमें एक है-रुचिभेद । भोजन में रुचि भेद बहुत होता है। रुचि भेद न हो तो वह कलह निवारण का एक उपाय है, प्रयोग है। कलह का दूसरा कारण है-चिन्तन का भेद । एक व्यक्ति कुछ सोचता है और दूसरा उसके ठीक विपरीत सोचता है। हर व्यक्ति में सोचने की भिन्नता होती है। चिन्तन का जहाँ भेद होता है, वहीं कलह की आशंका होती है। जब चिन्तन का भेद उभर कर सामने आए वहाँ मौन का प्रयोग होना चाहिए। व्यक्ति जब मौन हो जाता है तब भेद आगे नहीं बढ़ता। कलह का तीसरा कारण है-आग्रह । बात की पकड़ इतनी हो गई है कि टूट भले ही जाएं पर उसमें ढील नहीं दी जा सकती। कुछ भी हो जाए, मैं अपना आग्रह नहीं छोडूंगा, ऐसी स्थिति में कलह बढ़ता ही चला जाता है। इस आग्रह वृत्ति के कारण कलहपूर्ण वातावरण पैदा हो जाता है। तपस्या का प्रयोग, मौन का प्रयोग, मनोगुप्ति और वाकगुप्ति का प्रयोग-ये सब महत्त्वपूर्ण प्रयोग हैं। सारे प्रयोग शांत-सहवास से सुरभित होते हैं। ये सारे प्रयोग शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, शांतिपूर्ण जीवन को बढ़ाने वाले होते हैं तब तो इनकी सार्थकता है, अन्यथा इनका फलित सीमित हो जाता है। जीवन में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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