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अन्तरायाधिकरणे शारीरिकबाधापदः
बाधका इत्यधिकृत्य शरीरं, मनो भावनाश्चापरिष्कृताः
शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक-ये समस्याएं आत्मा के स्वास्थ्य में बाधक है। ० देहाभिमानञ्च
जिस मनुष्य में देहाभिमान विद्यमान है, वह आत्मा के स्वरूप का यथार्थ विश्लेषण नहीं कर सकता। जो साधक देहाभिमान से मुक्त होकर आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है, उसके अनुभव ही उस स्थिति में सहायक बनते हैं।
आप सुखासन में बैठ जाइये। दोनों नथुनों के नीचे ऊपर के होठ पर मन को केन्द्रित कीजिए। वहाँ श्वास के भीतर जाने और बाहर आने को मानस चक्षु से देखिए। दस मिनट तक इस साधना क्रिया को चलने दीजिए। उसके पश्चात् अनुभव कीजिए कि वहाँ पर चैतन्य का स्पंदन हो रहा है। इस अनुभव में जितना लम्बा समय लगा सकें, उतना ही अनुभव स्पष्ट हो जाएगा।
जब चैतन्य के स्पंदन का स्पष्ट अनुभव होने लगे तब धारणा को मोड़ देना आवश्यक होगा। आप जिस चैतन्य के स्पंदन का अनुभव करते हैं, वह शुद्ध चैतन्य नहीं है। वह मानस स्तरीय है। आप गहराई में जाने की धारणा कीजिए और शुद्ध चैतन्य के साक्षात्कार का अनुभव कीजिए। इस भूमिका में इन्द्रिय और मन के अतीत चैतन्य का अनुभव हो सकेगा। ० बहिर्मुखता च ० चञ्चलता च
जो व्यक्ति इड़ा और पिंगला से श्वास लेता है वह व्यक्ति बहिर्मुख होता
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