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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपाद:
३०५ ० नासाग्रे ध्यानं मनोनिरोधकम्
प्राण वायु का मुख्य केन्द्र है-नासाग्र। यहाँ मन को टिकाते ही प्राण वायु रुद्ध हो जाती है और मन का विलय हो जाता है। ० प्राणायामेन विवेकख्यातिः
प्राणायाम से अन्यत्वबोध, विवेकख्याति या भेदविज्ञान का विकास होता
० होरां होराद्वयं वा प्रतिदिन प्रतिमिनटमेकश्वासनिःश्वासः मनोविकारविनाशक:
एक मिनट में एक श्वास-निःश्वास की स्थिति यदि दिन में एक-दो घंटे तक हो जाए तो हम क्रोध आदि खतरों से बाहर हो जायेंगे। तब क्रोध, आवेश, अहंकार आदि का प्रश्न ही समाप्त हो जायेगा। मनोभाव से उत्पन्न होने वाली शरीर की विकृति का समाधान सहज संभव हो पायेगा। ० समवृत्तिश्वासप्रेक्षया प्राण-नाड़ीतंत्र-संतुलनम्
समवृत्ति श्वास प्रेक्षा से प्राण का संतुलन, नाड़ी तंत्र का संतुलन सधता है, चंचलता कम होती है।
० दीर्घश्वास आवेशोपशमः
हम लम्बा श्वास लें, आवेश शान्त होगा। दीर्घ श्वास के प्रयोग से ये आवेश-क्रोध, अहंकार और लोभ शांत होंगे। क्रोध तभी आता है जब आदमी छोटा श्वास लेता है या जब क्रोध आता है तो वह श्वास को छोटा बना देता
० श्वासे नियन्त्रिते मस्तिष्क-ग्रन्थिस्राव-चयापचयानां संयमः
श्वास नियंत्रण के द्वारा मस्तिष्क तरंग, हार्मोन के स्राव तथा चयापचय की क्रिया पर नियंत्रण किया जा सकता है। ० प्राणायामेन चित्तप्रसादः ० जालन्धरबन्धेन व्यानवायुजयः ० ब्रह्मरन्ध्रे संयमो महाप्राणसाधना
प्राण जितना बाहर रहेगा उससे नाड़ी शुद्धि और चित्त शुद्धि होगी।
व्यान वायु के साथ मन का योग होना है संकल्प-विकल्प । व्यान वायु को जीतने के लिए कंठ में संयम अर्थात् जालंधर बंध।
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