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________________ २६० महाप्रज्ञ-दर्शन कि वह आने वाले विकल्पों में उलझता नहीं है। आने वाले विचारों को द्रष्टाभाव से देखता है। पषता हा ० अनुभवेन रूपान्तरणम् अपने आपको बदलने का, व्यक्ति के रूपान्तरण का और आदतों के परिवर्तन का सबसे बड़ा उपाय है अनुभव के जगत् में प्रवेश पाना । यह अनुभव का जगत् है, ध्यान का जगत् है। ० ध्यानेन रासायनिकपरिवर्तनम् ० ततो निसर्गतः प्रत्याख्यानम् ध्यान के द्वारा व्यक्ति में ऐसा रासायनिक परिवर्तन होता है कि व्यसन अपने आप छूट जाते हैं। प्रत्याख्यान स्वयं घटित हो जाता है। जैसे ही व्यक्ति वर्तमान के प्रति जागरूक होता है, वैसे ही उसमें अतीत का प्रायश्चित्त और भविष्य का प्रत्याख्यान हो जाता है। ये दोनों घटनाएं घटती हैं। ० प्रेक्षया निरोधः ० अनुप्रेक्षया शोधनम् प्रेक्षा निरोध की प्रणाली है। अनुप्रेक्षा शोधन की। ० विश्वं व्यक्तिना ० विश्वेन व्यक्तिः ० उभयोर्युतिः समाज की सबसे छोटी इकाई है व्यक्ति और वृहत्तम इकाई है विश्व । व्यक्ति और विश्व-ये दो छोर पर दो बातें हैं, किंतु दोनों में अन्तःसंबंध है। दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं। व्यक्ति से भिन्न विश्व नहीं है और विश्व से भिन्न व्यक्ति नहीं है। व्यक्ति और विश्व-दोनों को एक संदर्भ में देखा जा सकता है। व्यक्ति की समस्याओं को छोड़कर विश्व की समस्याओं पर विचार नहीं किया जा सकता। ० असङ्ग्रहे आर्थिकोपनिवेशवादाभावः ० अनाग्रहे विचारस्वातन्त्रयम् ० उभयोरहिंसा एक सूत्र है असंग्रह और अनाग्रह का। उसका फलित है अहिंसा। उसका समीकरण होगा-असंग्रह, अनाग्रह, अहिंसा । ये दोनों बातें भुला दी गई हैं। असंग्रह का विकास होता है तो बाजार पर अधिकार करने की बात कमजोर पड़ती है। अनाग्रह का विकास होता है तो विचार पर अधिकार करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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