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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे साधनापादः
२५६ ० दृष्टिपरिवर्तनं प्रत्यगात्मेक्षणं वा साधना
साधना का अर्थ है-दिशा का परिवर्तन । आँख की दिशा का परिवर्तन । आँख के माध्यम से बाहर जाने वाली चेतना के आकर्षण का परिवर्तन। ० न द्वित्वं द्वैतं तद्धि द्वयोस्संयोगः, इन्द्रियाणि तत्साधनम् ।
व्यवहार के मंच पर द्वैत का अर्थ दो का होना नहीं किंतु सम्पर्क का होना है। सम्पर्क का पहला सूत्र है-इन्द्रिय । ० निर्जरा साधना, न योगक्षेमम्
साधना का अर्थ है-खोना यानि निर्जरा करना। जब तक पाने का विकल्प शेष रहता है तब तक निर्विकल्प साधना का मर्म हम नहीं समझ पाते। खोना ही साधना का मार्ग है। ० होरात्रयमेकस्थितिरासनसिद्धिः
आसन सिद्धि का अर्थ है-एक ही आसन में तीन घंटे बैठे रहना। ० शरीरममत्वविसर्जनं कायोत्सर्गः
कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर का उत्सर्ग कर देना, शरीर को छोड़ देना ममत्व का विसर्जन है। ० श्वाससंयमः प्राणायामः
प्राणायाम का अर्थ है-श्वास का निरोध । आयाम का एक अर्थ है-विस्तार । प्रस्तुत संदर्भ में आयाम शब्द का तात्पर्य है-श्वास पर नियंत्रण करना।
प्राणायाम का अर्थ है-वायुकोषों को प्राणवायु से भरना। ० अनुप्रेक्षा-जप-स्वाध्यायासन-प्राणायाम-तपासि ध्यानोपकारकाणि
अनुप्रेक्षा, जप, स्वाध्याय, आसन, प्राणायाम, तपस्या-ये सब ध्यान परिवार के सदस्य हैं। ० तैर्द्वन्द्वसहिष्णुत्वं प्रकाशावरणनिवारणञ्च
समस्त विकास का अर्थ है-ध्यान को और उसके परिवार के सब सदस्यों को एक साथ आमंत्रित करें, सबका सर्वांगीण प्रयोग चले, जिससे द्वन्द्वों को सहन करने की शक्ति भी जागे, हम प्रकाश के आवरण को भी दूर कर सकें।
० मनसो बुद्धेश्च परतः प्रज्ञा
मन और बुद्धि से परे की चेतना का नाम प्रज्ञा है।
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