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महाप्रज्ञ-दर्शन
० ज्ञानस्य भावनायाः क्रियायाश्च परिष्कारो जीवनस्य विज्ञानम्। ० तेषामपरिष्कारस्समस्याना मूलम्।
हमारे जीवन के तीन पहलू हैं-ज्ञानात्मक, भावनात्मक एवं क्रियात्मक । हम जानते हैं यह हमारा ज्ञानात्मक पहलू है। हम भावना से जुड़े हुए हैं-यह हमारा भावनात्मक पक्ष है। हम आचरण करते हैं-यह हमारा क्रियात्मक पक्ष है। जीवन विज्ञान का लक्ष्य है कि ये तीनों पक्ष परिष्कृत हों। जीवन की सारी समस्या अपरिष्कृत दृष्टिकोण, भाव एवं आचरण से पैदा होती है।
घृणा-भय-क्रोध-हर्ष-शोक-प्रेमेति षडावेगाः क्रोध-मान-माया-लोभाश्चेति कषायाः हास्य-रति-अरिति-भय-शोक-जुगुप्सा-स्त्रीवेद-पुरुषवेद-नपुंसकवेदाः नोकषायाः
मानस शास्त्र के अनुसार आवेग हैं-भय, क्रोध, हर्ष, शोक, प्रेम और घृणा।
कर्म शास्त्र ने मोहनीय कर्म के चार आवेग माने हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ । इन्हें “कषाय चतुष्टयी कहा जाता है। ये चार मुख्य आवेग हैं। कुछ उप-आवेग हैं। उनकी संख्या सात या नौ है। हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा और वेद-ये सात या वेद को स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद में हम विभक्त करें तो उप-आवेग नौ हो जाते हैं। इन्हें "नो कषाय" कहा जाता है। ये पूरे कषाय नहीं हैं। कषायों के कारण होने वाले नो कषाय हैं, मूल आवेगों के कारण होने वाले उप-आवेग हैं। ० ईर्ष्यादयस्तु सम्मिश्रणादावेगानाम्
____ मानसशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार ईर्ष्या आदि मूल आवेग नहीं हैं, ये सम्मिश्रण हैं। मिश्रित आवेग हैं। इनमें अनेक आवेगों का एक साथ मिश्रण हो जाता है। ये मूल नहीं हैं। ० सुविधासुखयोर्भेदः ० समस्यादुःखयोर्भेदः ० राग-द्वेष-मोह-श्रद्धा-बुद्धि-वितर्कात्मकानि चरितानि
सुविधा और सुख एक नहीं है। समस्या और दुःख भी एक नहीं है। चरित्र छह प्रकार का होता है-रागात्मक, द्वेषात्मक, मोहात्मक, श्रद्धात्मक, बुद्धयात्मक और वितर्कात्मक।
० प्रियतयासक्तिः
जहाँ प्रियता होती है वहाँ आसक्ति जमा होती जाती है।
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