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महाप्रज्ञ-दर्शन लोभ केवल धन का ही नहीं होता, वह सत्ता का भी होता है। ० द्वेषापगमेऽपि रागोऽवशिष्यते ० रागोपजीवित्वाद् द्वेषस्य
अप्रियता छूट जाती है प्रियता शेष रह जाती है, द्वेष छूट जाता है, राग बच जाता है। राग मूल बीमारी है, द्वेष उसका उपजीवी है। यह मूल बीमारी नहीं है। ० रागद्वेषाभावो यथार्थावबोधोऽनासक्तियोगश्च वैराग्यम् विराग का अर्थ है- न राग और न द्वेष । वैराग्य का अर्थ है-सच्चाई का बोध, यथार्थ का अवबोध ।
वैराग्य का नाम है-निष्काम कर्म, अनासक्ति योग। ० अनपेक्षितमपि सङ्ग्रहीतुकामः रागयुक्तः ० सामाजिकतावृद्धौ रागवृद्धिः ।। ० ततस्सुविधापेक्षिता . रागात्मक प्रवृत्तिवाला व्यक्ति संग्रह करता है, चाहे आवश्यक हो या न हो। जब समाज का विकास हुआ, तब रागात्मक वृत्ति का भी विकास हुआ, साथ ही साथ संग्रह की भावना भी बढ़ी। रागात्मक वृत्ति के कारण ही व्यक्ति सुख-सुविधाओं को बटोरता है। ० परिग्रहो दुःखम्
दुःख का उत्पादक यही परिग्रह की भावना है। ० त्यागोऽध्यात्मम्
अध्यात्म का अर्थ है-छोड़ते चलो, त्यागते चलो। ० मूर्छाहानौ तापत्रयान्मुमुक्षा।
शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ये तीन ताप हैं। इन तापों से जब व्यक्ति तप्त होता है तब उसमें मुमुक्षा पैदा होती है। मूर्छा में छिद्र होने पर यह मुमुक्षा का भाव पैदा होता है। संवेग पैदा होता है कि मुझे दुःख से मुक्त होना है। एक इच्छा पैदा होती है संवेग, मुमुक्षा-यह एक नई इच्छा पैदा हो . गई। आज की मूर्छा के सघन वातावरण में यह इच्छा कभी पैदा नहीं हुई कि मुझे मुक्त होना है। जैसे ही मूर्छा में थोड़ा सा छिद्र बना वैसे ही एक नई इच्छा पैदा हो गई।
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