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महावीर उवाच
० जे पमत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे पवुच्चति ।
जो विषय भोगों की इच्छा से अग्नि को पीड़ित करता है, वह वस्तुतः अपने को ही पीड़ित करता है।
तं परिण्णाय मेहावी इयाणिं णो जमहं पुव्वमकासी पमाएणं। समझदार मनुष्य यह संकल्प करे कि पहले मैंने प्रमादवश ऐसा किया किंतु अब ऐसा नहीं करूंगा (कि अग्नि को पीड़ित करूं)।
इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव वाउ-सत्थं समारंभति । लोक में सुख के लिए, सम्मान पाने के लिए तथा जन्म मरण आदि दुःखों से छुटकारा पाने के लिए लोग वायु को पीड़ित करते हैं।
अग्नि तथा वायु के प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग-धन्धों ने क्या-क्या संकट उपस्थित किये हैं, यह "हमारा पर्यावरण" ग्रंथ के आधार पर ज्ञातव्य है
औद्योगीकरण की प्रक्रिया के अनिवार्य अंग बन चुके ऐसे खतरनाक रसायन, तीन तरह से हमारा स्वास्थ्य और पर्यावरण खराब करते हैं। एक, ये कारखानों में लगे मजदूरों का स्वास्थ्य खराब कर देते हैं। दूसरे, औद्योगिक अवशेष या कचरा पर्यावरण नष्ट कर देता है और मनुष्य के लिए दीर्घकालीन खतरे पैदा करता है। तीसरे, रोज काम आने वाली वस्तुओं में इन रसायनों का इस्तेमाल बढ़ने लगा है जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य को भी खतरा बढ़ता जाता है। शीतल पेय, कृत्रिम रंग, डिब्बा बंद खाद्य सामग्री (जिसमें दूध और टमाटर की चटनी आदि शामिल है) पेंट, डिटरजेंट, प्रसाधन सामग्री तथा दवा जैसी सैकड़ों चीजों में इन रसायनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है। कुल मिलाकर आज
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