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लेखक की ओर से
भूमिका के रूप में जो कुछ मुझे कहना था वह ग्रन्थ की 'भावभूमि' में तथा उससे भी पहले "दृष्टि" शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी तालिका में कह दिया गया है। यहाँ तो मेरे लिये उन व्यक्तियों के प्रति नामोल्लेख-पूर्वक कृतज्ञता ज्ञापित करना ही शेष रह जाता है जिनके सक्रिय सहयोग तथा उत्साहवर्धन के बिना इस ग्रन्थ का निर्माण मेरे लिये दुष्कर हो जाता।
इस ग्रन्थ की पाण्डुलिपि तैयार होते ही मैं उसे लेकर सर्वप्रथम आचार्य महाप्रज्ञ के कर कमलों में अर्पित करने पहुंचा। इदम्प्रथमतया ग्रन्थ की पाण्डुलिपि पर आचार्यश्री की ही कृपादृष्टि पड़ी। उन्होंने इसे प्रथम दृष्ट्या प्रकाशन योग्य मानकर मुनि श्री धनञ्जय जी को अवलोकनार्थ सौंप दिया। अब मुनि श्री धनञ्जय जी तथा मुझ पर सदा स्नेह भाव रखने वाले श्री कन्हैयालाल जी फूलफगर इसके सम्पादन का गुरुतर भार वहन कर रहे हैं। इधर बहुत दिनों से आचार्यश्री के साहित्य के सम्पादन का भार मुनि श्री धनञ्जय ही संभाल रहे हैं। श्री कन्हैयालाल जी फूलफगर अभी अभी आचार्य महाप्रज्ञ पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं जो इस बात का सूचक है कि उन्होंने पिछले तीन दशकों में आचार्य महाप्रज्ञ के वाड्.मय की श्रावकों में सर्वाधिक सेवा की है। ये दोनों मेरे ग्रन्थ के सम्पादक बन रहे हैं। इससे मैं अपने को सम्मानित अनुभव करता हूं। इन दोनों पर, और मुझ पर भी, जो आचार्यश्री का वरद हस्त है, उसके कारण हम तीनों ही अभय भाव में रहते हैं, जिस अभय भाव के बिना आचार्यश्री पर कलम उठाना संभव नहीं है।
ग्रन्थ के निर्माण के समय मेरे साथ स्वाध्यायशील समणीपंचक ने अनुकम्पा पूर्वक ग्रन्थलेखन हेतु सामग्री-संकलन में मेरा अपूर्व सहयोग किया। वे पाँच समणियां हैं-समणी मंगलप्रज्ञा, समणी चैतन्यप्रज्ञा, समणी ऋजुप्रज्ञा,
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