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आधुनिक मनोविज्ञान, रंग-मनोविज्ञान, आभामण्डल तथा व्यक्तित्व संबधी नवीनतम संदभों को एकत्र करने में अनेक कठिनाइयां आईं, फिर भी मेरी यह ज्ञानार्जन-यात्रा अनेक स्नेहीसहयोगी जनों के आशीर्वाद, अनुग्रह , प्रेरणा और प्रोत्साहन का सम्बल पाकर सुगम बन गयी। मैं सबके प्रति हार्दिक आभार ज्ञापित करती हूँ।
मैं श्रद्धाप्रणत हूँ कल्याणी आगम वाणी के प्रति, जहां से मुझे निरन्तर ज्ञान का प्रकाश मिलता रहा। नतमस्तक हूँ उन सभी पूज्य आचार्यों, उपाध्यायों और मुनियों के प्रति जिनके ग्रंथ, टीका, भाष्य, चूर्णि आदि ने विषय के प्रतिपादन में पाथेय का काम किया। कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ उन विद्वानों और विचारकों के प्रति जिन्होंने शोधकार्य के लिए संदर्भ तथा सामग्री के संकलन में उल्लेखनीय योगदान दिया।
अविस्मरणीय है मेरे लिए श्रद्धेय गुरुदेव श्री तुलसी का आशीर्वाद तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ की अपरिमेय ज्ञान-सम्पदा का आलोक जिसने मुझे गतिशील बनाया ही नहीं, अपितु विषयवस्तु के प्रतिपादन का अवबोध भी दिया। साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी की सतत प्रेरणा और प्रोत्साहन मेरे साथ रहे। मुनि श्री दुलहराजजी, मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी, साध्वी श्री राजीमतीजी एवं साध्वी श्री निर्वाणश्री का कुशल निर्देशन मेरे कार्य सम्पादन में निरन्तर सक्रियता लाता रहा।
ग्रन्थ की पूर्णता में अहम भूमिका रही शोध निदेशक आदरणीय डॉ. नथमलजी टाटिया की जो अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त जैन व बौद्ध दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। उनके कुशल मार्गदर्शन में ही यह दुरूह कार्य संभव हुआ।
प्रस्तुत शोध कार्य में डॉ. सागरमल जैन, निदेशक - पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के समय-समय पर अमूल्य सुझाव मिलते रहे हैं, मैं उनके प्रति भी आभार ज्ञापन करती हूँ। सुश्री वीणा जैन तथा सुश्री सुधा सोनी द्वारा दिया गया आत्मीय सहयोग हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। एल. डी. इंस्टीट्यूट - अहमदाबाद, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान - वाराणसी तथा वर्धमान ग्रंथागार, जैन विश्व भारती - लाडनूं ने मुझे पुस्तक संग्रहण में उदारता के साथ उल्लेखनीय सहयोग दिया।
अपने लक्ष्य तक पहुंचने में जैन विश्व भारती, लाडनूं तथा जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के पदाधिकारी महानुभावों का अनुग्रह भरा वात्सल्य भी मुझे सदा प्रेरित करता रहा है। उन सभी के प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।
मैं ज्ञात-अज्ञात उन सभी के प्रति प्रणत हूँ, जिनका योगदान मेरी ज्ञान यात्रा का पड़ाव बना है।
सादर प्रणाम !
मुमुक्षु डॉ. शान्ता जैन
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