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उपसंहार
ध्यान के समय भावधारा पवित्र होने से लेश्याओं का परिणमन भी शुभ होता है। धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान के साथ लेश्या की शुभता का उल्लेख उत्तरवर्ती योग साहित्य में सविस्तार उपलब्ध होता है ।
लेश्या के अध्ययन की प्रासंगिकता
बीसवीं सदी के मनुष्य को भौतिकता की ऊंचाइयां अवश्य दी, पर साथ-साथ असहनीय तनावों की भीड़ ने भी उसे घेर लिया। फलतः हिंसा, तनाव, कुण्ठा, निराशा, तृष्णा, लोभ और असन्तुलन सर्वत्र दृष्टिगत होता है, जिसके मूल में मनुज-मन की मूर्च्छा काम कर रही होती है। इस मूर्च्छा को तोड़ने के लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के साथ-साथ यदि लेश्या चिकित्सा की विधि जोड़ दी जाए तो कई आशाजनक परिणाम सामने आ सकते हैं। जैनदर्शन को लेश्या का केवल सैद्धान्तिक विश्लेषण अभीष्ट नहीं है, वह उसके प्रायोगिक पक्ष पर भी उतना ही बल देता है। और यह उभय पक्ष ही उसकी परिपूर्णता का संसूचक है।
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लेश्या का अध्ययन जीवन मूल्यों का अध्ययन है। जीवन के साथ जुड़े वैचारिक एवं मानसिक पर्यावरण को शुद्ध एवं स्वस्थ रखने के लिए मनुष्य की जीवन शैली को बदलना बहुत जरूरी है। विधायक चिन्तन और विधायक व्यवहार के बिना मनुष्य प्राणवान तथा चरित्रनिष्ठ नहीं हो सकता । अशुभ से शुभ की ओर प्रस्थान कर व्यक्ति का शुभलेश्या में जीना न सिर्फ अपने लिए बल्कि परिवार, समाज एवं देश के लिए भी एक सार्थक उपलब्धि है ।
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