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जैन साधना पद्धति में ध्यान
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सूत्रकृतांग में अनुप्रेक्षा को भावना शब्द से भी प्रस्तुत किया गया है। भावना के अभ्यास से मोह की निवृत्ति और सत्य की उपलब्धि होती है। भगवान महावीर ने कहा - जिसकी आत्मा भावनायोग से भावित व शुद्ध है, वह जल में नौका के समान है। वह तट को प्राप्त कर सब दुःखों से मुक्त हो जाता है। जिससे चित्त की विशुद्धि हो, मोह का क्षय हो, स्थैर्य की प्राप्ति हो, विशिष्ट संस्कारों का आराधन हो, वह भावना है। साधना के क्षेत्र में भावना/ अनुप्रेक्षा की फलश्रुति विशिष्ट है। जिन चेष्टाओं व संकल्पों द्वारा मानसिक विचारों को भावित किया जाता है, उन्हें भावना कहा गया है। ___ अनुप्रेक्षा को आगम ग्रंथों में स्वाध्याय का एक अंग माना गया है। आत्मोपलब्धि के लिए दो साधन है - स्वाध्याय और ध्यान। इन दोनों से परमात्मा प्रकाशित होता है । स्वाध्याय के पांच भेदों में एक भेद अनुप्रेक्षा भी है। अनुप्रेक्षा ध्यान के लिए नितान्त अपेक्षित है। भावना जब पवित्र होती है, तब साधक अन्तर्मुखी बनता है। राग-द्वेष का अल्पीकरण होता है। चित्त एकाग्र होता है, तब ध्यान की स्थिति परिपक्व बन जाती है। ___ शुभचन्द्र ने भावों की शुद्धि, संवेग का विकास, वैराग्य, यम और उपशम के अभ्यास के लिए अनुप्रेक्षा को स्वीकार किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा कि भावना से भावित चित्त वाले का सब पदार्थों के प्रति निर्ममत्व होता है और उसी से समत्व की उपलब्धि होती है।
भावना/अनुप्रेक्षा के अनेक प्रकार है । आगम साहित्य में विविध दृष्टिकोण से इनका वर्गीकरण किया है। उत्तराध्ययन में पंचमहाव्रत की पच्चीस भावनाएं हैं। स्थानांग सूत्र में धर्मध्यान और शुक्लध्यान की चार-चार अनुप्रेक्षाएं उल्लिखित हैं । तत्त्वार्थसूत्र में मैत्री आदि चार भावनाओं का एक वर्गीकरण उपलब्ध होता है तथा दूसरा अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाओं का। ध्यानशतक में ध्यान से पूर्व होने वाली मन:स्थिति का सूचन 'भावना' शब्द से करते हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वैराग्य का उल्लेख किया गया है।
जब तक भावधारा नहीं बदलती, मनुष्य का आचरण और व्यवहार भी नहीं बदलता। पाश्चात्य देशों में भावधारा परिवर्तन करने के लिए ब्रेन वाशिंग (Brain Washing) का प्रयोग किया जा रहा है तथा सजेस्टोलॉजी (Suggestology) का प्रयोग भी किया जा रहा है।
स्वयं द्वारा स्वयं को भावित करना भावना है और मन की मूर्छा तोड़ने वाले विषयों का अनुचिन्तन करना अनुप्रेक्षा। प्रेक्षाध्यान पद्धति में मुख्यतः चार अनुप्रेक्षाओं का ध्यान करवाया जाता है - 1. अनित्य अनुप्रेक्षा, 2. अशरण अनुप्रेक्षा, 3. संसार अनुप्रेक्षा, 4. एकत्व अनुप्रेक्षा।
1. सूत्रकृतांग 1/15/2; 4. उत्तराध्ययन, 31/17; 7. ध्यानशतक
2. ज्ञानार्णव 2/5,6; 5. ठाणं, 4/68, 72;
3. योगशास्त्र 4 6. तत्वार्थ सुत्र 9/6,7
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