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भाव परिवर्तन
"छह मित्रों ने फलों से लदे वृक्ष को देखा और सभी ने फल खाने की इच्छा व्यक्त की। वे वृक्ष के पास पहुंचे और सोचने लगे कि फल कैसे खाएं ? सभी ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
प्रथम ने कहा हमें जड़ सहित सम्पूर्ण वृक्ष काट देना चाहिए। दूसरे ने कहा - नहीं, वृक्ष की टहनियां काटनी चाहिए। तीसरे ने कहा- नहीं, वृक्ष की शाखा प्रशाखाएं काटनी चाहिए। चौथे ने कहा नहीं, फलों से लदी शाखाएं काटनी चाहिए। पांचवें ने कहा- नहीं, सिर्फ पके हुए फलों को ही तोड़ना चाहिए। छट्ठे ने अन्तिम समाधान दिया जरूरत है कि हम वृक्ष को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाएं। खाने के लिए पर्याप्त फल जमीन पर बिखरे पड़े हैं, इन्हें खाना ही उचित रहेगा।"
क्या
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चिन्तन यात्रा के ये छह पड़ाव लेश्या की मनोवैज्ञानिक व्याख्या करते हैं। आगम प्रथम व्यक्ति को कृष्णलेशी मानता है, क्योंकि उसमें क्रूरता, हिंसा व स्वार्थ के साथ विनाश की भावना निहित है। ऐसा व्यक्ति औरों के अस्तित्व को मिटा कर चलता है। दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवां और छट्टा व्यक्ति क्रमश: नीललेशी, कापोतलेशी, तेजोलेशी, पद्मलेशी व शुक्ललेशी है। इनमें क्रमश: वृक्ष के अस्तित्व को मिटाने की भावना का अन्त और सहज सुलभ सामग्री का सन्तोषजनक उपयोग प्रकट होता है। लेश्या के भावों को अभिव्यक्ति देने वाला यह दृष्टान्त मनुष्य को मन, भाषा और कर्म को विधायक बनाने की प्रेरणा देता है ।
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