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लेश्या और मनोविज्ञान
जब शुक्ललेश्या जागती है, व्यक्ति के आत्म परिणामों में विशुद्धता आती है तब व्यक्ति ऋद्धि सम्पन्न बनता है । अनिर्वचनीय सुखानुभूति करता है । सांसारिक तृष्णाओं से मुक्क होकर आत्मदर्शन की यात्रा पर चल पड़ता है।
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मनोविज्ञान की भाषा में भी परिपक्व व्यक्तित्व वाला व्यक्ति पूर्णत: सामान्य एवं समायोजित होता है। ऐसे व्यक्तित्व के कुछ मानक हैं।
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1. वह आन्तरिक द्वन्द्वों से मुक्त रहता है।
2. जीवन की समस्याओं का समाधान सोच-समझकर बुद्धिमत्ता के साथ करता है ।
3. जीवन की परिस्थितियों को यथार्थ रूप में ग्रहण करता है ।
4. उत्तरदायित्व का सम्यग् ग्रहण और निर्वहन करता है ।
5. आत्मसंयमी होता है ।
6. मित्रों, सहयोगियों, समाज और राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखता है ।
7. परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढालता है ।
8. दूसरों के प्रति अच्छी धारणा रखता है।
9. स्व को क्षति पहुंचाने वाले काम नहीं करता है ।
10. कृतज्ञ होता है ।
11. शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होता है । 12. अच्छे सामाजिक संबंध बनाता है ।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ए. एच. मैसलों ने अपनी पुस्तक ( Motivation and Personality) में परिपक्व व्यक्तित्व की व्याख्या आत्मसिद्धि (Self-actualisation) के सन्दर्भ में की है । जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व में आत्मसिद्धि के लक्षण पाये जाते हैं, उसमें पूर्ण परिपक्वता आ जाती है। यह सिद्धान्त मानव जीवन का पूर्ण एवं प्रकाशमान चित्र उपस्थित करता है । उसके अनुसार स्वभावतया मानव प्रकृति शुभ है,
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अशुभ नहीं है । ज्यों-ज्यों मानव का व्यक्तित्व परिपक्व होता जाता है, मनुष्य की आन्तरिक शुभ प्रकृति
अधिक अभिव्यक्त होने लगती है । सामान्यतः परिवेश अच्छे को भी बुरा बना देता है। पर कुछ-कुछ व्यक्ति दूषित परिवेश में भी भले बने रहते हैं । परिवेश व्यक्ति के आत्मसाक्षात्कार में बाधा न डाले, यह आवश्यक है 1
मैसलों ने मानव प्रकृति की आवश्यकताओं को शक्ति के आधार पर पूर्वापर क्रम प्रस्तुत किया है
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