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पंचम अध्याय
व्यक्तित्व और लेश्या किसी व्यक्ति विशेष को जानने के लिए उसके व्यक्तित्व की समग्रता जाननी जरूरी है। हर व्यक्ति की अपनी वैयक्तिक विशिष्टता और अनन्यता है। कोई दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। व्यक्तित्व व्यक्ति की मात्र अभिव्यक्ति नहीं है, एक समग्र प्रक्रिया है। ___ व्युत्पत्ति की दृष्टि से अंग्रेजी भाषा में व्यक्तित्व (Personality) शब्द का निर्माण लैटिन के पर्सेना (Persona) शब्द से हुआ है। इसका प्रयोग नाटकीय पोशाक तथा मुखौटे के लिए किया जाता था। इन्हें पहन कर अभिनेता मंच पर विभिन्न अभिनय किया करते थे। इस अर्थ में पर्सनेलिटि से तात्पर्य आन्तरिक व्यक्ति के बाहरी मुखौटे से था। दूसरे शब्दों में कहें तो आन्तरिक चेतना ही चरित्र संबंधी विशेषताओं का मूल केन्द्र है। व्यवहार में उसकी अभिव्यक्ति होती है। इसलिए व्यक्तित्व का अध्ययन करते समय चेतना के बाहरी और भीतरी दोनों स्तरों का विश्लेषण आवश्यक है।
जैन-दर्शन द्रव्य लेश्या के आधार पर बाहरी व्यक्तित्व की और भाव लेश्या के आधार पर आन्तरिक व्यक्तित्व की व्याख्या करता है। मनोविज्ञान की शब्दावली में यह तथ्य इस प्रकार प्रतिपादित हुआ है कि व्यक्तित्व मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है।
संसार में दो तत्त्व हैं - जड़ और चेतन। दोनों का संयोग है - जीव। जीव की लाक्षणिक परिभाषा में जैन-दर्शन ने दस संस्थानों का उल्लेख किया है जिसमें गति, इन्द्रिय, कषाय, लेश्या, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, वेद होता है, वह जीव है। जिसमें ये नहीं होते हैं, वह अजीव है। प्राणी और पदार्थ के बीच यही भेदरेखा है।
कौन व्यक्ति कैसा है, इसकी व्याख्या बिना लेश्या के संभव नहीं है, क्योंकि प्रतिक्षण चित्त की पर्यायें बदलती हैं। देश, काल, परिस्थिति के साथ बदलता मनुष्य कभी ईर्ष्यालु, छिद्रान्वेषी, स्वार्थी, हिंसक, प्रवंचक, मिथ्यादृष्टि के रूप में सामने आता है, तो कभी विनम्र, गुणग्राही, अहिंसक, उदार, जितेन्द्रिय और तपस्वी के रूप में। प्रश्न उभरता है कि आखिर इतना वैविध्य क्यों?
जैन-दर्शन चित्त के बदलते भूगोल को सम्यग् जानने के लिए और मनुष्य के बाह्य तथा भीतरी चेतना के स्तर पर घटित होने वाले व्यवहारों को समझने के लिए लेश्या का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करता है।
1. ठाणं 10/18
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