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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
भगवान महावीर से पूछा गया-'भंते ! के सामाइए ? के सामाइयस्स अठे'-सामायिक क्या है ? सामायिक का अर्थ क्या है ?
भगवान ने कहा-'आया खलु सामाइए । आया सामाइयस्स अट्ठे ।' -गौतम ! आत्मा सामायिक है । आत्मा ही सामायिक का अर्थ है |
सामायिक का अर्थ है-आत्मा में होना, अपने में होना | जहां अपने में होने की बात है वहां ध्यान करने की बात नीचे रह जाती है । सामायिक में हम किसी का ध्यान नहीं करते, केवल अपने अस्तित्व मे होते हैं । अपने अस्तित्व में होना ही सामायिक है और यही है निर्विचारता की स्थिति । जब तक हम अपनी आत्मा में नहीं होते तब तक निर्विचारता की कल्पना भी नहीं कर सकते, निर्विचार नहीं हो सकते । प्रकारान्तर से कोई न कोई विचार हमें घेरे रहेगा और विचारों का द्वन्द्व चलता रहेगा । जो आत्मा में होता है, वह जानने-देखने की क्रिया करता है, और कुछ भी नहीं करता, उस स्थिति में सामायिक होता है और उसी स्थिति में निर्विचारता आती है | बहुत अच्छा तो है कि निर्विचार ध्यान की अपेक्षा सामायिक ही कहें और. शब्द का यह चुनाव बहुत अच्छा है । भगवान् महावीर ने यह शब्द दिया है। दुःख मुक्ति का उपाय
एक व्यक्ति मुनि के पास आया और बोला-'संसार में बहुत सारे दुःख हैं । इन दुःखों से छुटकारा कैसे मिले ? उपाय बताएं ।' मुनि ने कहा, 'देखो, कठिन प्रश्न है । पूछ ही लिया तो उत्तर देना पड़ेगा, अन्यथा मैं उत्तर नहीं देता । बड़ा जटिल सवाल है । एक उपाय बताए देता हूं । जाओ, तुम उस आदमी का अंगरखा ले आओ, जिसने जीवन में कभी दुःख का स्पर्श न किया हो । उसका अंगरखा पहन लो, तुम्हारा दुःख छूट जाएगा ।'
उसने कहा- 'बहुत सीधा उपाय बताया आपने ! मैं घूमूंगा और अंगरखा प्राप्त करूंगा । ऐसा आदमी मिल ही जाएगा, जिसने कभी दुःख का अनुभव न किया हो ।'
वह घर से चला । सबसे निकट के गांव में गया । गृहस्वामी से बोला, 'तुम्हारा अंगरखा लेने आया हूं | अंगरखा देने से पहले मुझे तुम यह बताओ
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