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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
साम्योदय : भाग्योदय
समस्या यह है - कब बाएं स्वर को चलाएं और कब दाएं को चलाएं ? इस समस्या को समाधान देने वाली एक विधि का विकास किया गया और वह है समवृत्ति श्वास प्रेक्षा । यह अनुलोम-विलोम प्राणायाम नहीं है किन्तु ध्यान का एक प्रयोग है । हम समता की बात करते हैं, साम्य योग और सामायिक की बात करते हैं। जीवन में समता आनी चाहिए किन्तु जिसका नाड़ीतंत्र संतुलित नहीं है, स्वचक्र संतुलित नहीं है, मस्तिष्क का दायां और बांयां पटल संतुलित नहीं है, उसमें समता का विकास कितना होगा | समता के लिए इस संतुलन को बनाना जरूरी है। बहुत सारी बातें आ जाती हैं किन्तु समता नहीं आती है तो सब कुछ व्यर्थ सा हो जाता है । दूसरी भाषा में कहा जा सकता है - जिसमें समता नहीं जागती, उसका भाग्योदय ही नहीं होता, सब कुछ होने पर भी वह रिक्त बना रहता है ।
कुंती की सीख
कुंती पांडवों के साथ जंगल में रह रही थी । कुछ स्त्रियों को इस बात का पता चल गया । वे इकट्ठी होकर कुंती से मिलने चली आईं। महिलाओं ने कुंती से निवेदन किया- महारानी जी ! आप जंगल में पधारी हैं । हमें आपके दर्शनों का कब मौका मिलता है ? आप हमें कुछ सीख दें। कुंती के मन में गहरी वेदना थी फिर भी वह कुछ शांत हुई । उसने कहा
भाग्यवंतं प्रसूयेथाः, मा शूरान् माँश्च पंडितान् । शूराश्च कृतविद्याश्च वने सीदंति मत्सुताः ॥
तुम स्त्री हो, माता हो ! तुम बेटे को जन्म दो तो भाग्यवान् को जन्म देना । न शूरवीर को पैदा करना, न विद्वान् को पैदा करना और न पंडित को पैदा करना । जन्म दो तो भाग्यवान् को जन्म दो ।
महिलाओं ने पूछा- क्यों ?
कुंती ने कहा- देखो ! ये मेरे पुत्र सामने खड़े हैं। ये कितने शूरवीर हैं, पुरुषार्थी और पराक्रमी हैं । कितने कृतविद्य हैं । इन्होंने सारी धनुर्विद्या
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