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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
और मस्तिष्कीय पटलों का चक्र । ये चक्र प्रकृति से उपलब्ध हैं । हम इन्हें जान लें तो परिवर्तन के सूत्र हाथ लग जाते हैं । यदि हम इन्हें जान लें तो परिवर्तन के सूत्र हाथ लग जाते हैं । यदि हम इन्हें नहीं जान पाते हैं, तो कुछ ऐसी बातें आ जाती हैं, जो वांछनीय नहीं होतीं ।
एक ब्राह्मण पैदल यात्रा कर रहा था । चलते-चलते जंगल आ गया । ब्राह्मण ने सोचा- यहां खुला स्थान है। भोजन बनाकर खाना खा लेना चाहिए । आटा दाल उसके पास थे । उसने इधर-उधर से पत्थर इकट्ठे किए । गीली मिट्टी का चौका बनाया । यह सारी तैयारी कर लकड़ियां बीनने चला गया । उसी समय एक गधा आया और वह उस चौके में बैठ गया । ब्राह्मण ने देखाचौके में कोई बैठा है । इतने श्रम से बनाया चौका खराब हो गया है। समस्या हो गई रसोई बनाने की । रसोई कहां बनाए ? वह निराश स्वर में बोल उठा - दूसरा कोई होता तो उसे कहता- गधे हो, कुछ देखते नहीं । जब आप स्वयं आकर विराज गए हैं तो आपको क्या कहूं। आपके लिए कोई शब्द ही नहीं रहे । अनुपमेय हैं आप । मैं आपको क्या उपमा दूं ?
ऐसा जीवन में भी होता है । हम कोई चौका बनाते हैं और ऐसी घटना घट जाती है, जो समस्या पैदा कर देती है । जरूरी है ऐसी व्यवस्था करना, जिससे चौके की तरफ गधा आए ही नहीं । ऐसे परिवर्तन के नियमों को खोजना अपेक्षित है, जो समस्या को आने ही न दें ।
रहस्यपूर्ण प्रयोग
स्वर-चक्र का हमारे स्वभाव के साथ गहरा संबंध है । लौकिक और अलौकिक विद्याओं के साथ उसका गहरा संबंध है । हमारी मनोदशा के साथ भी उसका संबंध है | हमारे भाग्य के साथ भी उसका संबंध जुड़ा हुआ है । समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग सामान्य प्रयोग नहीं है । उसकी प्रयोग विधि बहुत सामान्य है- 'बाएं नथुने से श्वास लें और दाएं नथुने से श्वास निकालें फिर दाएं नथुने से श्वास लें और बाएं नथुने से श्वास निकालें' इस प्रकार श्वास की आवृत्तियां करते चले जाएं। यह प्रयोग इतना सा ही लगता है पर यह इतना ही नहीं है । यह बहुत रहस्यपूर्ण प्रयोग है ।
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