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स्वर-चक्र का संतुलन और सामायिक मस्तिष्क या मेरुदण्ड के द्वारा हमारी प्रवृत्तियां संचालित होती हैं । दाएं मस्तिष्क का काम है- अनुशासन, धर्म आस्था, सौजन्य, अच्छा आचरण आदि । अध्यात्मविद्या-पराविद्या का पूरा काम दाएं मस्तिष्क का है । बाएं मस्तिष्क का काम है- पढ़ना, लिखना आदि । तर्क, गणित आदि जितनी लौकिक विद्याएं हैं, वे सब बाएं मस्तिष्क का कार्य हैं । दोनों का अपना अपना काम बंटा हुआ है । इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर हमारे हाथ में नियंत्रण और परिवर्तन के कई सूत्र आ जाते हैं । ऋतुचक्र
आदमी की मनोदशा (Mood) बदलती रहती है । सुबह से शाम तक कम से कम सैकड़ों बार मूड बदलता होगा । एक बच्चे का मूड भी बदलता है, एक युवक का मूड भी बदलता है । समझदार और नासमझ-दोनों का मूड बदलता है । शायद ही ऐसा आदमी मिले, जिसका मूड न बदलता हो । बदलने का एक कारण है ऋतुचक्र । हमारे साथ एक ऋतु चक्र भी चलता है । एक वर्ष में छह ऋतुएं होती हैं-ग्रीष्म, वर्षा, शरद् आदि । सूक्ष्म अध्ययन करने वालों ने बताया-आदमी एक दिन में छह ऋतुएं भोगता है । प्रातः काल का समय है तो बसंत ऋतु चल रही है । एक प्रहर बीतेगा, ग्रीष्म ऋतु आ जाएगी, सिर भी गरमाने लग जाएगा । किसी से ठण्डे दिमाग से बात करनी है तो प्रातःकाल करो । दोपहर एक बजे अच्छी बात करेंगे तो वह भी उल्टी पड़ जाएगी । उस वक्त सामान्य बात भले ही करें, बहुत महत्त्वपूर्ण बात नहीं करनी चाहिए | कोई महत्त्वपूर्ण कार्य से जुड़ी बात हो, सुझाव या मार्गदर्शन की बात हो तो ग्रीष्म ऋतु में मत करो । हो सकता है-लेने के देने पड़ जाएं। शाम का समय होता है वर्षा का । संध्या होते होते दिमाग ठंठा होने लगता है । प्रायः मंत्रणा का समय होता है सायं चार बजे के बाद । बारह बजे से चार बजे के बीच का जो समय है, उसमें मंत्रणा नहीं होनी चाहिए | परिवर्तन के सूत्रों को जानें
यह ऋतु का चक्र बराबर चलता है । तीन ऋतुएं दिन में होती हैं और तीन ऋतुएं रात में | हम कितने चक्रों के बीच चल रहे हैं । स्वर-चक्र, ऋतुचक्र
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