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सामायिक के तीन आयाम
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उठा । सुलस ने सामने खड़े भैंसे को करुणापूर्ण दृष्टि से देखा और कुठार अपनी जंघा पर चलाया। वह मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। जंघा से रक्त की धार बह चली । थोड़ी देर बाद वह सावचेत हुआ । वह करुणापूर्ण स्वर में बोला- 'बंधुओ ! यह घाव मुझे पीड़ित कर रहा है । कृपया आप मेरी पीड़ा को बंटाएं, जिससे मेरी पीड़ा कम हो । स्वजन वर्ग ने खिन्न मन से कहा - 'यह कैसे हो सकता है ? पीड़ा को कैसे बांटा जा सकता है ?' सुलस बोल उठा- 'आप लोग मेरी पीड़ा का विभाग भी नहीं ले सकते तब मेरे पाप का विभाग कैसे ले सकेंगे ? मैं इस हिंसा को नहीं चला सकता, भले फिर यह पैतृकी हो । क्या यह आवश्यक है कि पिता अन्धा हो तो पुत्र भी अन्धा होना चाहिए ।'
अभय का आयाम
अर्जुन मालाकर आज बडी तत्परता से अपनी पुष्पवाटिका में पुष्प चुन रहा है । बंधुमती छाया की भांति उसके पीछे चल रही है। उनका मन बहुत उत्फुल्ल है। राजगृह के कण-कण में उत्सव अठखेलियां कर रहा है । उसका हर नागरिक सुरभि-पुष्पों के लिए लालायित हो रहा है । 'आज पुष्पों का विक्रय प्रचुर मात्रा में होगा'- इस कल्पना ने अर्जुन के हाथों और पैरों में होड़ उत्पन्न कर दी। थोड़े समय में ही चारों करंडक पुष्पों से भर गए । मालाकार दंपति पुलकित हो उठा ।
अर्जुन पुष्पवाटिका में पुष्प चुनकर यक्ष की पूजा करने जाया करता था । मुद्गरपाणि उस प्रदेश का सुप्रसिद्ध यक्ष है । उसका आयतन पुष्पवाटिका से सटा हुआ है । अर्जुन यक्ष का भक्त है । यह भक्ति उसे वंश-परम्परा से प्राप्त है ।
राजगृह में ललित नाम की एक गोष्ठी थी । उसके सदस्य गोष्ठिक कहलाते थे । उस दिन छह गोष्ठिक पुरुष यक्षायतन में क्रीड़ा कर रहे थे । अर्जुन अपनी नित्य-चर्या के अनुसार यक्ष को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए यक्षायतन में प्रविष्ट हुआ । वह नहीं जानता था कि आज नियति ने उसके लिए पहले से ही कोई चक्रव्यूह रच रखा है ।
गोष्ठिक पुरुषों ने अर्जुन के पीछे बंधुमती को आते देखा । उनकी काम
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