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तराजू के दो पल्ले
१७१ और उसे पाना । सत्य की प्राप्ति सहज नहीं है इसीलिए अन्वेषण का मूल्य बना हुआ है । इस वैज्ञानिक युग में वह अधिक प्रासंगिक और मूल्यवान् सिद्ध हुआ है।
कहा गया-तुला का अन्वेषण करें । प्रश्न होता है-तुला क्या है ? उसका निरीक्षण-अन्वेषण कैसे करें ? आचारांग का महत्वपूर्ण सूक्त है
जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ । ___ जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाणइ ॥
जो अपने आपको जानता है, वह दूसरे को जानता है । जो दूसरे को जानता है, वह अपने आपको जानता है । ___ कल्पना करें-दो जीव हैं । एक व्यक्ति स्वयं है और एक दूसरा आदमी है । व्यक्ति पहले अपने आपको देखे । वह सोचे-मुझे किसी ने गाली दी तो मुझ पर क्या प्रतिक्रिया हुई ? मेरा मन कैसा बना ? मेरे मन में क्या भावना आई ? गाली की अपने भीतर क्या प्रतिक्रिया हुई ? वह उसका निरीक्षण करे । उसी व्यक्ति ने सामने वाले व्यक्ति को गाली दी । वह देखें- इस व्यक्ति के भीतर क्या प्रतिक्रिया हो रही है ? जो अपने भीतर प्रतिक्रिया हुई, क्या वैसी ही दूसरे के भीतर प्रतिक्रिया हुई ? या अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया हुई ? व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया को पढ़े और उसके सन्दर्भ में पुनः अपने आपको देखे, देखता चला जाए । पढ़ें सुख-दुःख के संवेदन ___गर्मी के मौसम में एक व्यक्ति ठण्डी हवा के झोंकों के बीच बैठा है । ठण्डी हवा से उस व्यक्ति को सुख मिला, तुम्हें कैसा लगा ? सामने वाले को ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तो उसे कैसा लगा ? तुम्हें गर्म हवा लगी तो तुम्हें कैसा लगा? और उसे गर्म हवा लगी तो उसे कैसा लगा ? हम इस नियम को आगे बढ़ाएं । कल्पना करें-बहुत गर्मी का मौसम है । एक ही कमरा है और उसमें एक ही दरवाजा है । एक व्यक्ति उस दरवाजे में जाकर बैठ गया । उसे वहां बैठना कैसा लगेगा ? तुम्हें कैसा लगेगा ? दूसरा व्यक्ति उससे कहे-भीतर बैठ जाओ । उसे कैसा लगेगा ? तुम्हें कैसा लगेगा ? तुम इस नियम को पढ़ो, इस घटना का निरीक्षण करो । इसका अर्थ है-अपने एवं
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