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निर्द्वन्द्व चेतना है समता
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तोड़ देना बड़ा कठिन है । क्योंकि मस्तिष्क के दूसरे प्रकोष्ठ को हमने इतना शिक्षित कर रखा है कि वही-वही बात हमारे सामने बार-बार आती है । यह सामान्य प्रकृति है । इसमें कोई अपवाद ढूंढता भी मुश्किल है । लाभ हुआ
और व्यक्ति बहुत खुश हो जाएगा । किसी से कुछ करवाना है तो उसकी प्रशंसा कर दो, न होने वाला काम भी बन जाएगा और थोड़ी-सी निंदा कर दो, बनने वाला काम भी बिगड़ जाएगा । इस सामान्य प्रकृति से बचने वाले लोग विरल होते हैं। कहां से आता है यह स्वर !
शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास को एक किसान ने पीट दिया । यह प्रश्न शिवाजी के सामने आया । किसान ने सोचा-अब तो फांसी की सजा ही मिलेगी। समर्थ रामदास बोले-शिवा ! इसने मुझे पीटा है, दण्ड मैं दूंगा। तुम्हें इसे दण्ड देने का अधिकार नहीं है | शिवाजी बोले-आपकी जैसी मर्जी । रामदास ने कहा-'शिवा ! इस किसान को पांच बीघा जमीन और दे दो ।' सब आश्चर्य में पड़ गए, बोले-'यह क्या दण्ड दिया आपने?'समर्थ रामदास ने कहा-'बेचारा गरीब है । यदि गरीब नहीं होता तो एक गन्ने के टुकड़े के लिए मुझे नहीं पीटता । इसे पांच बीघा जमीन दे दो फिर यह किसी को पीटेगा नहीं।'
___ यह स्वर कहां से निकल सकता है ? जिस व्यक्ति ने समता को साध लिया, अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित कर लिया, वही इस प्रकार का दण्ड दे सकता है | इस बात पर हम ध्यान केन्द्रित करें-ध्यान का अर्थ मस्तिष्क को ऐसा प्रशिक्षित कर लेना है कि आदमी तनाव से मुक्ति पा सके और समता की दिशा में आगे बढ़ सके । समता और तनाव मुक्ति में अंतःसंबंध है | समता की उपलब्धि का अर्थ है-तनाव से मुक्ति | यह एक महान् उपलब्धि है और वह ध्यान के द्वारा प्राप्त की जा सकती है ।
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