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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक पांच मित्र थे । वे सब यह मानते थे-भाई ! हमारी गाढ़ मित्रता है, हम सब एक-दूसरे के सहयोगी हैं | सब परार्थ दृष्टि वाले हैं । स्वार्थी कोई नहीं है । एक दिन उत्सव का प्रसंग था । एक मित्र ने कहा-कितना अच्छा हो, आज खीर बना लें । सबने कहा-प्रस्ताव सुन्दर है । एक बोला-चावल मैं ले आऊंगा । दूसरा बोला-दूध मैं ले आऊंगा । तीसरा बोला-चीनी मैं ले आऊंगा । चौथा बोला-चूल्हा और ईंधन मैं ले आऊंगा । पांचवां मित्र मौन रहा । सबने पूछा-बोलो, तुम क्या लाओगे | पांचवां मित्र बोला-मैं अपने भाई-बहनों को खाने के लिए ले आऊंगा ।
मित्रता की भ्रांति टूट गई । सबने कहा-कितना स्वार्थी है । केवल अपना व्यक्तिगत स्वार्थ देखता है । भीतर है सुख . जब ध्यान करना आदमी शुरू करता है तो भ्रांतियां ढूंटनी शुरू हो जाती. है । व्यक्ति के मन में एक भ्रांति यह रहती है कि सुख खाने में है | अच्छा खाने में सुख तब मिलेगा जब शाक में खूब मिर्च-मसाले डालेंगे । जब व्यक्ति शिविर में ध्यान करने आता है, तब यह भ्रांति टूट जाती है | जब भीतर झांकना शुरू करता है तब लगता है-अरे ! सुख तो भीतर है । एक घण्टा ध्यान किया और अपूर्व आनन्द आया । प्रश्न हो सकता है-उस समय क्या मिला ? क्या मसालेदार खाद्य पदार्थ मिले ? मिठाइयां या चटपटी चीजें मिली ? कुछ भी नहीं मिला फिर आनन्द कहां से आया ? वह आनन्द बाहर से नहीं, भीतर से फूटा है | यह सचाई ध्यान से उपलब्ध होती है । जब यह सचाई सामने आती है, पदार्थ में सुखारोपण की भ्रांति टूट जाती है ।
ध्यान भ्रांति को तोड़ने और सचाई को उपलब्ध करने का साधन है । जो व्यक्ति केवल बाह्य जगत् में ही जीता है, अन्तर्जगत् में कभी प्रवेश नहीं करता, उसका जीवन अच्छा नहीं होता । अच्छा जीवन वह होता है, जिसमें इन द्वंद्वों को सहने की शक्ति होती है | समता व्यक्तिगत है | इसका दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है | लाभ-अलाभ आदि स्थितियों में सम रहना, एक जैसा रहना, हमारी व्यक्तिगत क्षमता है । यह व्यक्तिगत क्षमता जैसे-जैसे बढ़ती है, तनाव कम होता जाता है । मैं मानता हूं-एक साथ तनाव के चक्र को
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