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कर्म-फल भोगने की कला है सामायिक दुःख और वेदन ___ हम गहरे में उतर कर देखें-असद् कर्म का फल मिलता है, आदमी दुःखी बन जाता है । शरीर में बीमारी है | असातवेदनीय कर्म का उदय हुआ और आदमी दुःखी बन जाएगा । बीमारी आने पर मनःसंताप हो जाता है, दुःख की रेखाएं खिंच जाती हैं, समस्याएं उभर आती हैं। यह क्या है ? लीवर की बीमारी, कैंसर की बीमारी, हार्ट की बीमारी आदि न जाने कितने प्रकार की भयंकर बीमारियां हैं । उनसे पीड़ित होने पर मन को भारी आघात लगता है । जब बीमारीजन्य वेदना होती है, आदमी एकदम दुःखी बन जाता है । क्या ऐसा हो सकता है, असद् कर्म का दुःख भोगे और आदमी दुःखी न बने ? कहा गया-ऐसा हो सकता है और यही धर्म की कला है । यह एक ऐसी कला है, जिसे जानने पर ऐसी स्थिति बन सकती है-कष्ट आने पर भी आदमी दुःखी न बने, असद् कर्म का वेदन करने पर, आदमी दुःखी न हो ।
चक्रवर्ती का सौंदर्य
चक्रवर्ती सनत्कुमार की घटना प्रसिद्ध है । वे बहुत नाटकीय ढंग से मुनि बने । उन्हें अपने सौन्दर्य पर बड़ा अहंकार था । वे गर्व से कहा करते थे-इस दुनियां में मेरे से अधिक सुन्दर दूसरा कोई नहीं है । सुन्दरता का भी अहंकार होता है । वस्तुतः शरीर के भीतर मल ही मल जमा हुआ है । यह जानते हुए भी व्यक्ति सुन्दरता के अहंकार में डूबा रहता है । चक्रवर्ती के सौन्दर्य की महिमा पूरे संसार में फैल गई । कहा जाता है-एक देव बूढ़े ब्राह्मण का रूप बनाकर चक्रवर्ती का सौन्दर्य देखने आया । उसने चौकीदार से कहा-मैं चक्रवर्ती के दर्शन करना चाहता हूं। ___चौकीदार ने जवाब दिया-अभी व्यक्तिगत समय है, चक्रवर्ती के दर्शन नहीं हो सकते । उनके दर्शन कल राज्यसभा में होंगे ।
ब्राह्मण बोला-तुम मेरी अभिलाषा-पूर्ति में सहायक बनो, चक्रवर्ती तक मेरी यह बात पहुंचा दो-आपके दर्शनों की आकांक्षा लिए एक ब्राह्मण जवानी अवस्था में दूर देश से चला था और चलते-चलते अब बूढ़ा हो गया है । पता नहीं, वह जीएगा या नहीं।
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