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मानसिक शक्ति और सामायिक
१२९ का सेवन करते-करते जीवन में घोर अंधेरा छा जाता है तब पता चलता है कि भीतर एक और भी चाह है, जो इन भौतिक चाहों से बहुत बड़ी चाह है । वह चाह ही इस सचाई को प्रकट करती है कि द्वन्द्व-चेतना से परे भी मनुष्य निर्द्वन्द्व-चेतना को चाहता है । उस द्वन्द्वातीत चेतना का नाम है-सामायिक । सामायिक के घटित होने पर, मन की गति पर अंकुश लग जाता है । मन की गति पर अंकुश होता है तब समस्याएं समाप्त होने लगती हैं । उस स्थिति में समस्यामुक्त, दुःखमुक्त जीवन का अभ्यास प्रारम्भ हो जाता
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