SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक के बाद ऐसा लगता है कि मानो एक नयी तलहटी पर पहुंच गए हैं । दुःखों की नयी तलहटी उनके सामने आ गयी है । तब लगता है, कुछ और होना चाहिए, जो पूर्णता दे सके । ये भौतिक पदार्थ पूर्णता नहीं दे पा रहे हैं । उस स्थिति में द्वन्द्वातीत चेतना की खोज प्रारंभ होती है और मनुष्य सोचता हैं कि द्वन्द्व चेतना के परे भी कोई निद्व चेतना हो, जो मनुष्य को पूर्णता दे सके, अपूर्णता समाप्त कर सके । यह अभौतिकता की चाह जो अन्तर में होती है, उसे समझाने का मौका मिल जाता है । सिद्धान्त फोटोग्राफी का प्रत्येक शरीर के चारों ओर एक आभामंडल होता है। आभामंडल निर्जीव वस्तु में भी होता है । एक सिद्धांत है कि प्रत्येक स्थूल पदार्थ से रश्मियां विकीर्ण होती हैं, रश्मियों का उत्सर्जन होता है । यही फोटोग्राफी का सिद्धांत है । मनुष्य के चले जाने पर भी, उस स्थान पर उस मनुष्य का फोटो लिया जा सकता है। वह फोटो इसीलिए लिया जा सकता है कि शरीर के चारों ओर से रश्मियां विकीर्ण होती हैं । आभामंडल को हम देख नहीं पाते, किन्तु उसके देखने की भी एक पद्धति है। आप अंधेरे में बैठ जाएं । कहीं से प्रकाश की रेखा न आए । अपने हाथ को ऊंचा करें । थोड़े समय तक वैसे ही बैठे रहें। आपको हाथ तो दिखाई नहीं देगा किन्तु हाथ के आसपास चारों ओर जो आभामंडल होता है, वह दीखने लग जायेगा । दोनों हाथों को ऊंचा करेंगे तो यह लगेगा कि एक हाथ की रश्मियां दूसरे हाथ में जा रही हैं और दूसरे हाथ की रश्मियां पहले हाथ में आ रही हैं । एक प्रसिद्ध पद्धति है । दो व्यक्ति दस हाथ की दूरी पर अंधेरे में बैठ जाएं । वे एक दूसरे को दिखायी नहीं देंगे । वे यदि नग्न हों तो उनका आभामण्डल स्पष्टता से दिखाई देने लगेगा । देखते-देखते कुछ समय के पश्चात् एक नीले रंग का आकार सामने दीखने लगता है | जो चीज प्रकाश में दिखाई नहीं देती, वह अंधेरे में दीखने लग जाती है | निर्द्वन्द्व चेतना है सामायिक अभौतिक सत्ता की चाह, चेतन तत्त्व की चाह, जिसका हमें भौतिकता की चकाचौंध में, अंधेरे में पता ही नहीं लगता था, किन्तु जब भौतिक पदार्थों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy