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अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक
व्यक्ति को परखा जा सकता है । व्यक्ति के विचारों का विश्लेषण करो और तुम यह जान जाओगे कि वह कैसा है। विचार के द्वारा ही व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को जाना जा सकता है । जब मन स्वस्थ होता है, तब व्यक्ति की उपज भी स्वस्थ होती है । वह सही बात को सही ढंग से सोचता है ।
स्वस्थ चिन्तन कैसे होता है, इसे हम समझें । आचार्य भिक्षु जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । संयोगवश कोई साधु पास में नहीं था | वे अकेले ही थे | उस मार्ग से एक काफिला निकला । कुछ लोग पास में आए। उन्होंने वंदना कर पूछा - 'महाराज ! आप कौन हैं ? आपका नाम क्या है ?' आचार्य भिक्षु ने कहा- 'मैं मुनि हूं । मेरा नाम है भीखण ।' लोग एक साथ बोल पड़े - "अरे, भीखण जी ! हमने आपकी बहुत प्रशंसा सुनी है। गांव-गांव में आपकी महिमा के गीत गाए जा रहे हैं। हमारे मन में तो आपकी तस्वीर ही दूसरी थी । हमने सोचा था - कितने बड़े संत होंगे, उनके साथ संतों की बड़ी टोली होगी । उनके पास हाथी, घोड़े, नौकर-चाकर आदि होंगे। बड़ा ठाट-बाट होगा । परन्तु आप तो अकेले ही हैं। जमीन पर बैठे हैं। न नौकर, न चाकर, न घोड़ा, न हाथी । सामान्य व्यक्ति की भांति आप बैठे हैं 1"
आचार्य भिक्षु के मन पर इस चिन्तन का कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि उनका चिन्तन अस्वस्थ होता तो मन-ही-मन दुःखी हो जाते और यह सोचते कि लोगों के मन में मेरी तस्वीर कुछ और है किन्तु मैं कुछ और हूं । यदि जमीन फट जाए तो मैं उसमें समा जाऊं |
आचार्य भिक्षु ने सोचा- 'यदि मेरे पास इतना ठाट-बाट हाथी-घोड़े होते तो भीखण की इतनी महिमा नहीं होती। मैं अकेला हूं इसीलिए यह सारी महिमा होती है । जो व्यक्ति अपने में अकेला होता है और अपने अकेलेपन का अनुभव करता है, वह स्वयं अपनी महिमा का अनुभव करता है और दूसरे भी उसकी महिमा का अनुभव करते हैं ।'
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यह था आचार्य भिक्षु का स्वस्थ चिन्तन । चिन्तन से व्यक्ति को परखा जा सकता है, व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण किया जा सकता है ।
प्रतिक्रिया विरति
मानसिक स्वास्थ्य का चौथा पेरामीटर है-प्रतिक्रिया । विभिन्न
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