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________________ मानसिक स्वास्थ्य और सामायिक कैसे हो सकता है ? हमारे में योग्यता है, क्षमता है, किन्तु हमने कभी अपनेआपको जानने का प्रयल नहीं किया । व्यक्ति सक्षम होते हुए भी अक्षमता अनुभव करता है । मन अनुताप से भर जाता है । अपने प्रति अभद्र व्यवहार देखकर व्यक्ति भभक उठता है, मन में असंतोष उभर आता है क्योंकि वह अपनी अक्षमता को नहीं जानता । जब वह अपनी अक्षमता को नहीं जानता तब वह दूसरों को ही देखता है, स्वयं को नहीं देख पाता । पिता के दो पुत्र हैं । पिता एक पुत्र को दायित्व सौप देता है तब दूसरे के मन में असंतोष की ज्वाला उभर आती है । इसलिए उभरती है कि वह यह नहीं जानता कि वह इस दायित्व के लिए अक्षम है । जो व्यक्ति अपने आपको नहीं जानता वह अपने मन में सदा जलने वाली आग सुलगा देता है और उसमें सदा जलता रहता है । मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्वयं की योग्यता और अयोग्यता का निरीक्षण बहुत आवश्यक है। परिणामों की स्वीकृति मानसिक स्वास्थ्य की साधना का दूसरा सूत्र है-परिणामों की स्वीकृति । हम प्रवृत्ति करते हैं, किन्तु उसके परिणामों को स्वीकार नहीं करते इसीलिए पन में असंतोष और अशांति पैदा होती है । कृत के परिणामों से जहां अपनेआप को बचाने की मनोवृत्ति होती है, वहां मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है । रोग का एक कीटाणु उसमें घुस जाता है । परिणाम को स्वीकार करने के लिए मन बहुत शक्तिशाली चाहिए । जो मन शक्तिहीन होता है वह कभी परिणामों को स्वीकार नहीं कर सकता । हमें अच्छे या बुरे-सभी प्रकार के परिणामों को स्वीकारना चाहिए । इसमें कभी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए । जिस व्यक्ति में परिणामों को स्वीकार करने का साहस नहीं होता, भय होता है वह परिणामों को दूसरे के माथे पर मढ़ देता है, स्वयं बच निकलना चाहता है । यदि परिणाम अच्छा है तो उसका श्रेय स्वयं लेना चाहेगा और यदि बुरा परिणाम है तो उसका अश्रेय दूसरे पर उड़ेल देगा। यह साहसहीनता है | इससे मन मलिन होता है, बीमार होता है ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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