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समभाव है चेतना का तीसरा आयाम से परिचित हैं । किन्तु मन की क्षमताएं इतनी ही नहीं हैं, और भी व्यापक हैं । वे व्यापक तब जानी जा सकती हैं और तब उनका विकास किया जा सकता है जब सबसे पहले हम ज्ञात क्षमताओं से कुछ दूर हट सकें । जब तक हम स्मृति, कल्पना और चिंतन के घेरे में रहेंगे तब तक मन की संभावित क्षमताओं के बारे मे हम जान नहीं पाएंगे । उनके प्रति विश्वास नहीं होगा
और उन्हें उपलब्ध करने का कोई उपाय भी हस्तगत नहीं होगा । कैसे हो क्षमता का विकास ?
हमने मन की एक सीमा बना ली है । हम उसके बाहर जाकर देखना नहीं चाहते । इस संकुचित दायरे को तोड़े बिना क्षमताओं का विकास नहीं हो सकता । स्मृति, कल्पना और चिन्तन- इन तीनों वलयों को तोड़े बिना हम अपनी मानसिक क्षमताओं का अंकन नहीं कर सकते । मन की शक्ति के द्वारा दूसरों के विचार जाने जा सकते हैं, दूसरों के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, संदेश भेजा जा सकता है, संदेश मंगवाया जा सकता है | मन की शक्ति से पौधों को भी प्रभावित किया जा सकता है जिस प्रकार चेतन को प्रभावित किया जा सकता है वैसे ही अचेतन को भी प्रभावित किया जा सकता है । मन से पदार्थ परिचालित किए जा सकते है, स्थानान्तरित किए जा सकते हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जा सकते हैं । इस प्रक्रिया में केवल मन की शक्ति ही काम करती है। किसी को छूने की जरूरत नहीं है । जब मन जागृत हो, अभ्यस्त और प्रशिक्षित हो, ये कार्य सहजसरल हो जाते हैं। प्राण का दीप
प्रश्न होता है कि मन को प्रशिक्षित और अभ्यस्त कैसे किया जा सकता है । उसको जागृत करने का उपाय क्या है ?
मन को जागृत करने का एकमात्र उपाय है-जीवन की दिशा को बदलना, जीवन की गति को बदलना । श्वास को बदले बिना जीवन की दिशा को नहीं बदला जा सकता । । श्वास की गति को बदले बिना जीवन की गति को नहीं बदला जा सकता। हमारी सारी शक्तियों का प्रतिनिधि है-श्वास
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