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गंगा में नौका-विहार /६७ खेमिल ने कहा, 'यह बहुत बुरा शकुन है । मुझे भंयकर तूफान की आशंका हो रही है।' नैमित्तिक की बात सुन नौका के यात्री घबरा उठे।
__इधर नौका गंगा नदी के मध्य में पहुंची, उधर भंयकर तुफान आया। नदी का जल आकाश को चूमने लगा। नौका डगमगा गई। उत्ताल तरंगों के थपेड़ों से भयाक्रांत यात्री हर क्षण मौत की प्रतीक्षा करने लगे। भगवान् उन प्रकंपित करने वाले क्षणों में भी निष्कंप बैठे थे। उनके मन में न जीने की आशंसा थी और न मौत का आतंक। जिनके मन में मौत के भय का तूफान नहीं होता, उसे कोई भी तूफान प्रकंपित नहीं कर पाता।
तूफान आकस्मिक ढंग से ही आया और आकस्मिक ढंग से ही शान्त हो गया। यात्रियों के अशान्त मन अब शान्त हो गए। भगवान् तूफान के क्षणों में भी शान्त थे और अब भी शान्त हैं। खेमिल ने कहा, 'इस तपस्वी ने हम सबको तूफान से बचा लिया।' यात्रियों के सिर उस तरुण तपस्वी के चरणों में झुक गए। नाविक ने कहा, 'भंते! आपने मेरी नैया पार लगा दी। मुझे विश्वास हो गया है कि मेरी जीवन-नैया भी पार पहुंच जाएगी।'
नौका तट पर लग गई। यात्री अपने-अपने गंतव्य की दिशा चल पड़े भगवान् थूणाक सन्निवेश की ओर प्रस्थान कर गए।
१. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २८०-२८१ ।
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