SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करुणा का अजस्र स्रोत / ६५ प्रतिमा भी खंडित हो गई। उसने सोचा था - महावीर कहेंगे कि तिनका टूट जाएगा तो मैं इसे नहीं तोडूंगा और वे कहेंगे कि नहीं टूटेगा तो मैं इसे तोड़ दूंगा। दोनों ओर उनकी पराजय होगी। किन्तु जो महावीर को पराजित करने वाला था, वह जनता की संसद में स्वयं पराजित हो गया। ___ अच्छंदक अवसर की खोज में था। एक दिन उसने देखा, भगवान् अकेले खड़े हैं। अभी ध्यान-मुद्रा में नहीं है। वह भगवान् के निकट आकर बोला, भंते! आप सर्वत्र पूज्य हैं। आपका व्यक्तित्व विशाल है। मैं जानता हूं, महान् व्यक्तित्व क्षुद्र व्यक्तित्वों को ढांकने के लिए अवतरित नहीं होते। मुझे आशा है कि भगवान् मेरी भावना का सम्मान करेंगे।' इधर अच्छंदक अपने गांव की ओर लौटा और उधर भगवान् वाचाला की ओर चल पड़े। उनकी करुणा ने उन्हें एक क्षण भी वहां रुकने की स्वीकृति नहीं दी। १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २७५- २७७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy