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________________ ढके पड़े थे, वे मेरी लेखनी के स्पर्श से अनावृत्त हो गए। भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् पौराणिक युग आया। उसमें महापुरुषों की प्रस्तुति चमत्कार के परिवेश में की गई। भगवान् महावीर के जीवनवृत्त के साथ भी चमत्कारपूर्ण घटनाएं जुड़ी। उनके कष्ट सहन के प्रकरण में भी कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण घटनाएं हैं। दैवी घटनाओं की भरमार है। मैंने चामत्कारिक घटनाओं का मानवीकरण किया है। इससे भगवान् के जीवन की महिमा कम नहीं हुई है, प्रत्युत उनके पौरुष की दीपशिखा और अधिक तेजस्वी बनी है। आचार्यश्री तुलसी ने चाहा कि भगवान् की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी पर मैं उनके जीवन की कुछ रेखाएं अंकित करूं। मैंने चाहा, मैं इस अवसर पर भगवान् के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि समर्पित करूं। लक्ष्य बना और कार्य सम्पन्न हो गया। आचार्यश्री की प्रेरणा और आशीर्वाद ने मेरा पथ आलोकित किया । मैं अपनी गति में सफल हो गया। प्रस्तुत पुस्तक की प्रतिलिपि और परिशिष्ट मुनि दुलहराजजी ने तैयार किए। उनका सहयोग मेरे लए बहुत मूल्यावान है। 'नामानुक्रम' तैयार करने का श्रेय मुनि श्रीचन्द 'कमल' को है। मुनि मणिलालजी और मुनि राजेन्द्रजी ने प्रतिशोधन में सहयोग दिया। उसका अंकन भी अस्थान नहीं होगा । अणुव्रत भवन नई दिल्ली १९७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only आचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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