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प्रज्ञा की इस परिक्रमा में केवल श्रुत अथवा अनुमान की यात्रा नहीं है ।
"प्रज्ञा के अस्तित्व को स्पर्श करने का प्रयत्न किया गया कि स्मृतियां विलीन होने लगीं। कल्पनाएं काल-कवलित हो गईं। अनुभूतियां मिटने लगीं। जब अनुभूतियां विलीन होने लगती है, तब प्रज्ञा की यात्रा प्रारम्भ होती है। प्रज्ञा सत्य का साक्षात् है। उसको जिया जा सकता है, किन्तु कहा नहीं जा
सकता ।"
हम कैसे पागल है, दुनियां को बदलने में लगे हैं, स्वयं के अतिरिक्त सब कुछ बदल देना चाहते हैं। संसार का प्रत्येक व्यक्ति पवित्र बन जाए। आदमी देवता बन जाए। व्यक्ति की यह जबरदस्त पीड़ा है कि वह दूसरों को बदलने की सोचता है जो दुनियां की असम्भव घटना है। वह न हुई है और न कभी होगी। अतः यही श्रेयस्कर है कि व्यक्ति स्वयं को बदलने के लिए साधना का प्रयोग करे।
D प्रेक्षा-ध्यान जीवन का विज्ञान है। व्यक्ति को श्वास लेने की क्रिया से लेकर जीवन की समस्त समस्याओं पर रचनात्मक ढंग से समाधान देता है। प्रेक्षा ध्यान मिथ्या मान्यताओं से और साम्प्रदायिक कट्टरताओं से व्यक्ति को बचाता है। प्रेक्षा-पद्धति में मानने का आग्रह नहीं है, केवल जानने की बात है। जानो और करो। प्रेक्षा-ध्यान शुद्ध प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति एक वैज्ञानिक की तरह प्रयोग में उतरता है, उसके परिणामों का साक्षात्कार करता है, चाहे वह व्यक्ति किसी मजहब, परम्परा और पूजा-उपासना में विश्वास करने वाला क्यों न हो।
हर व्यक्ति दूसरों के सम्बन्ध में जितना जानने का प्रयत्न करता है, भूल से ही अपने बारे में उसके मानस में किञ्चित् जिज्ञासा नहीं उभरती ।
धर्म की दयनीय स्थिति इसलिए हो रही है कि उसकी तेजस्विता आचरण एवं जीवन-व्यवहार में प्रगट नहीं हो रही है और न ही इस संदर्भ में शौध कार्य हो रहा है।
- प्रज्ञा की परिक्रमा से
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