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॥ णमोऽत्थु णं वीयरायाणं ॥
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आदिवचन
गौतमीयकाव्य ग्रन्थः . .. गौतमीयकाव्य नामनो काव्यग्रन्थ विद्वान जनसमाजनी समक्ष रजू थाय छे. श्रीजैनशासनना चार प्रकारना अनुयोगोमां, धर्मकथानुयोगना विषयनी साथे द्रव्यानुयोगना विषय- प्रतिपादन करवाना कारणे आ काव्यग्रन्थ, श्रीजिनकथित सम्यक् श्रुतज्ञाननी प्राप्तिनुं परम साधन गणी शकाय तेम छे. __सामान्य रीतिये (१) द्रव्यानुयोग, (२) गणितानुयोग, (३) चरणकरणानुयोग अने (४) धर्मकथानुयोग-आ मुजबना चारे अनुयोगोमां श्रीजिनकथित अंग, उपांग अने प्रकीर्ण श्रुतज्ञान संकळायेलं छे. जो के द्रव्यानुयोग आदि अनुयोगो अमुक दृष्टिये परस्परनी तरतमता अवश्य धरावे छे, छतां ते सधळा य परस्पर एकमेकनी साथे एक सांकळमां सळंग संकळाई रहेला अंकोडाओनी जेम एकांगीभावे जोडाईने रहेला छे. आ अपेक्षाये द्रव्यानुयोग आदि चारे य अनुयोगो, जैनशासनमां मोक्षप्राप्तिना सम्यग् आलंबन तरिके एक सरखी रीतिये उपास्य छे. - श्रीजिनकथित प्रवचनना सारभूत द्वादशांगीरूप गणिपिटकना अंगसमा द्रव्यानुयोग तेम ज धर्मकथानुयोगना विषयोनुं सुन्दरतर प्रतिपादन आ ग्रन्थमा करवामां आव्यु छे. आ कारणे श्रीजिनकथित
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