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श्रीपार्श्वनाथप्रभुना न्हवणजळ्थी थयेलुं सूरिजीना कोढ रोगनुं निवारण विगेरे प्रसंगो स्मरण अने साक्षात्कार थइ शके एवा बोधक-आश्चर्यकारक-चित्रपटो तथा रचनाओ करवामां आवी हती।
श्रीस्तंभनपार्श्वनाथना मंदिरमा अष्टाह्निका-महोत्सव तथा अष्टोत्तरीस्नात्र, प्रभावना, स्वामिवात्सल्य, कुम्भस्थापना अने जळयात्रानो वरघोडो वगेरे दरेक प्रसंगो खम्भातना श्री जैन-तपागच्छ श्रीसंघ तरफथी शासनप्रभावना वधे एवी रीतिए अत्यन्त भावपूर्वक उजववामां आव्यां हतां।
कुम्भस्थापनाने दिवसे सुश्रावक सोमचन्द पोपटलाल तरफथी स्वामिवात्सल्य करवामां आव्यु हतुं । आ प्रसंगे झवेरी रायचन्दभाई तरफथी श्रीफळनी प्रभावना करवामां आवी हती, अने ते प्रसंगमां बे हजार जनसंख्यानो समुदाय हाजर थयो हतो। ___ आ पद समर्पणना प्रसंगने शोभाववा माटे मुम्बईना श्रीगोडीपार्श्वनाथना मन्दिरना (विजयदेवसूरसंघनी पेढीना) ट्रस्टीयोमांथी रा. ब. कान्तिलाल ईश्वरलाल जे. पी. झवेरी, भायचन्दभाई नगीनभाई झवेरी तथा सौभाग्यचन्द उमेदचन्द दोशी उपरांत मुम्बईना वीजा आगेवानोमांथी संघवी नगीनदास करमचन्द, संघवी जीवतलाल प्रतापशी तथा गांधी वाडीलाल चत्रभुज भावनगरवाळा विगेरे, उज्जैनथी छगनीरामजी मगनीरामजीवाळा अमरचन्द तथा मांगीलालजी विगेरे, महिदपुरथी चम्पालालजी रुंडवाल, अने अमदावादथी लालभाई गिरधरलाल छोटालाल तथा रसिकलाल मोहनलाल छोटालाल वगेरे वगेरेनुं खम्भातमां आगमन थयुं हतुं ।
आ पद समर्पणनो महोत्सव अने चातुर्मासना प्रसंगोमा सेवानो लाभ लेनार मन्दिर, उपाश्रय, आयंबीलखाताना दरेक पगारदार भाईव्हेनोने तेओए करेली सेवानी कदर करीने स्व. शेठ बुलाखीदासना सुपुत्रो तथा श्रीसंघे सुन्दर प्रीतिदान आपीने तेओने आनन्दित करवारुप पोतानी फरज बजावी हती। ___ आ द्वितीय महोत्सवना निमित्तभूत-सूत्रोनी योगोद्वहन द्वारा सकल श्रमणसमुदाय सरलताथी आराधना करी शके ते हेतुथी पूज्य पंन्यासप्रवरश्रीना सदुपदेशथी बृहद्योगविधिना पुस्तकनी द्वितीयावृत्ति प्रगट करीने साधु-साध्वीओने भेट आपवानुं निश्चित थई चूक्युं हतुं. तेना खर्च माटे उपदेश आपता स्व. शेठ बुलाखीदास नानचन्दना सुपुत्रोए रु. ७५१), तपागच्छ जैनसंघे रु. २५१), भोगीलाल मगनलाल नाणावटीए रु. १०१), अम्बालाल पानाचन्दनी धर्मशाळा तरफथी हा. कान्तिलाल भायचन्दे रु. १०१); अने परीख वाडीलाल छोटालाले रु. ५१) मळीने ग्रन्थ सम्बन्धी थयेला सम्पूर्ण खर्चना रु. १२५५) बारसो पंचावन आपीने ए पांचे जणाए पन्थने प्रकाशित करवानो लाभ लीधो, अने पदवी समर्पणने प्रसंगे दरेक साधु साध्वीने ते ग्रन्थ भेट आपवामां आव्यो, अने हजु पण भेट अपाय छे.
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