________________
॥ प्रास्ताविक-निवेदन ॥
सुरतनिवासी उदारचरित दानवीर स्व० शेठ देवचन्द लालभाई झवेरीना स्मरणार्थे स्थापन
थयेल "शेठ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड " तरफथी प्रस्तुत प्रकाशननी प्रसिद्ध करातां प्रन्थरत्नो पैकी प्रकाशन कराता आ ग्रन्थरत्ननो क्रमांक ओळख- ९२ छ । आ ग्रन्थरत्ननुं नाम " श्रीसिद्धहेमचन्द्र-शब्दानुशासन
बृहद्वत्यवचूर्णिः" छे । ग्रन्थना रचयिता श्री जयानन्दसूरीश्वरजीना विद्वजनमाननीय-शिष्य-मुनिश्री अमरचन्द्र छे । गीवाणभाषाना रसिक अभ्यासियोने अतीव उपयोगी थनारा आ ग्रन्थरत्नने अभ्यासियोना करकमलमा सहर्ष समर्पण कराय छ । श्री सिद्धहेमचन्द्र-शब्दानुशासननी तत्त्वप्रकाशिका-टीकाना अखण्ड अभ्यासिश्रीजया
नन्दसूरीश्वरजीना विद्वान्-शिष्य-मुनिप्रवर-श्रीअमरचन्द्रे स्वपरहितार्थे आ ग्रन्थरत्ननो आ अवचूर्णि रचेली छे । आ पन्थनी अन्तिमपंक्तिमा प्रथम पुस्तिका रचना समय- लिखिता' एवा स्पष्ट शब्दोथी द्वितीय पुस्तिका लखी होय, लखवानी
धारणा होय अगर लखतां लखतां अधूरी होय एवी वास्तविक कल्पनाओने अवकाश छे । परन्तु प्रकाशन थतां आ ग्रन्थमां ग्रन्थनी शरुआतथी त्रीजा अध्यायना प्रथमपादना अन्तिमसूत्र सुधीनी अर्थात् नव पादनी सम्पूर्ण-अवचूर्णि छ। त्यार पछीना सूत्रोनी अवचूर्णि ( तेओश्रीनुं लखाण ) वर्तमानकालीन विद्यमान ग्रन्थालयोमांथी प्रयत्न करवा छतां अद्यापि पर्यन्त प्राप्त थयुं नथी । ग्रन्थना अन्तिम भागमा रचयिताए रचनानो समय विगेरे नीचे मुजब जणावेल छे
" संवत् १२६४ वर्षे श्रावण शुदि ३ रखौ श्रीजयानन्दसूरिशिष्येणाऽमरचन्द्रेणाऽऽत्मयोग्यावचूर्णिकायाः प्रथमपुस्तिका लिखिता । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः।" जैनाचार्योनी व्यवस्थित-लेखन कळाने अनुसरतां उल्लेखो ‘गुजरातनो मध्यकालीन
इतिहास' नामना ग्रन्थमांथी जोइतां प्रमाणमां मळी आवे छे. चौलुआ ग्रन्थनी क्य वंशना इतिहास साथे जैनाचार्योना नाना मोटा जीवनप्रसंगो प्राचीनता- वणायेला छे। वि. सं. २०१७ थी वि. सं. १२९८ सुधी लगभग
२७५ वर्ष उपरांतनो सोलंकी वंशनो राज्यकाल छे । सोलंकी वंशना मध्याह्न-कालमां कलिकालसर्वज्ञ-भगवाने जैनशासनना सिद्धान्तो अने अनुष्ठानोनो आस्वाद जगत्ने चखाडयो छे तेथी ज तेओ माटे आखं जगत् ऋणी छे. आथी ज अगीआरमी शता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org