________________
प्रकरण ७७-७८ ] भोज और कर्णका संघर्ष
[६३ कर्णसे भीमका आधा भाग लेना। ७८) [ इसके बाद, जब वह राजा भोज स्वर्गगामी हुआ ] तो उस वृत्तान्तको जान कर कर्ण ने उसके दुर्गम दुर्गको तोड़ कर भोज की सारी लक्ष्मी हस्तगत की। तब श्री भीम ने दाम र को आदेश किया कि'तुम या तो श्री कर्ण से मेरा प्राप्य आधा राज्य ले आओ या अपना सिर ले आओ।' इस प्रकार राजादेश पालन करनेकी इच्छासे, ३२ पदातियोंके साथ, उसने राजाके तंबूमें घुसकर मध्याह्न कालमें सोये हुए श्री कर्ण को बन्दीरूपमें गिरफ्तार किया। इसके बाद उस राजाने राज्य-ऋद्धिके दो विभागोंमेंसे एकमें शिव, शालिग्राम, गणेश इत्यादि देवताओंको रखा और दूसरेमें राज्यकी अन्य सारी वस्तुओंको रखा। ' अपनी इच्छाके अनुसार इन दोमेंसे एक हिस्सा ले लो।' उसके ऐसा कहने पर, वह सोलह प्रहर तक तो वैसे ही पडा रहा, फिर भीम की आज्ञा [ आने पर ] देवताओंके भंडारको ले कर ही उन्हें श्री भीम को भेंट किया। इस प्रबन्धका सारा इतिहास इन दो काव्योंमें संग्रहीत है । जैसे
१२४. पचास हाथ प्रमाणके दो शिवमंदिर एक ही लग्नमें प्रारम्भ किये गये । यह स्थिर हुआ कि जिस
राजाके मंदिर पर पहले कलशारोपण होगा, उसके पास दूसरा राजा छत्र और चामर रहित हो कर आयगा। इस संवादमें राजा भोज की बुद्धि व्ययसे विमुख हो गई और इस प्रकार वह
कर्ण देव के द्वारा जीता गया। १२५. भोज राजाके स्वर्ग जानेके बाद अतिबली कर्ण ने जो धारा पुरी के भंग करनेका उपाय किया तो राजा भीम को सहायक बनाया। उसके भृत्य दा मरने बंदी किये हुए कर्ण से
गणपतिके सहित नीलकंठेश्वरको सोनेकी पालखीके साथ ग्रहण किया। १२६. कवियों और कामियोंमें, योगियों और भोगियोंमें, धन देनेवालों और सजनोंका उपकार
करनेवालोंमें, तथा धनी, धनुर्धर और धार्मिकोंमें भो ज जसा राजा पृथ्वी तलपर नहीं हुआ। १२७. राजा भोज ने अपने त्यागोंके कारण कल्पवृक्षके समान अशेष दुःखोंको त्रासित किया, साक्षात् बृहस्पतिकी नाई शीघ्रतापूर्वक नाना प्रबंधोंकी रचना की। राधा-वेध ( मत्स्य-वेध ) करने में वह अर्जुनके समान [ सिद्ध ] था । इसीलिये बहुत दिनोंसे, उसकी कीर्तिसे उत्सुक-चित्त देवताओंके
द्वारा निमंत्रित हो कर वह स्वर्ग गया। इस प्रकार भो ज के अनेक प्रबन्ध हैं जो परंपराके अनुसार जानने चाहिये ।
इस प्रकार श्रीमेरुतुङ्गाचार्यरचित प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थका 'श्रीभोजराज और श्रीभीमराजके नाना यशोंका वर्णन' नामक यह दूसरा प्रकाश समाप्त हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org