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प्रकरण ३०-३४ ] मूलराजादिका प्रबन्ध
[२५ मूलराजके वंशज। [१८] अपने सारे शत्रुओंको समाप्त करके जब वह-( मूल राज )-कथाशेष होगया ( मृत्युको प्राप्त
हुआ) तो उसके बाद पृथ्वीमण्डलका आभूषण ऐसा चा मुण्ड राज राजा हुआ। [१९] उसकी सेनाका साज, शत्रुओंकी स्त्रियोंके मनको संतप्त होनेकी विद्या सिखाने में निपुण पण्डित
' था और उसके सैन्यने इन्द्रको भी भयभीत कर दिया था। [२०] उसके हाथरूपी कमलमें रहनेवाली, कोश (१ म्यान; २ कमल) में विलास करनेसे चमकती
हुई तलवार रूपी भौंरोंकी श्रेणीने राजाओंके वंशोंको भिन्न कर दिया। ३०) संवत् १०५३ से लेकर १३ वर्षतक चामुण्ड रा ज ने राज्य किया। [२१ ] जिसकी कीर्ति तीनों लोकोंमें प्रकाशित हो रही है, और जो महीपतियोंमें श्रेष्ठ माना जाता है
ऐसा वल्ल भ राज नामक उसका पुत्र राजा हुआ। [२२ ] वह दृढ़ पौरुषवाला राजा शत्रुओंकी नगरियोंको घेरे रहता था इसलिये विशेषज्ञोंने उसका
नाम ' जगत्-झम्प न ' रखा था। ३१) सं० १०६६ से लेकर ६ महीने तक राजा वल्लभ राज ने राज्य किया । [२३] जिसमें रजोगुण और तमोगुणका अभाव था और जिसके जैसा यश प्राप्त करना औरोंके लिये
अत्यंत दुर्लभ था, ऐसा दुर्लभ राज नामका उसका छोटा भाई [उसके बाद ] राजा हुआ। [२४] साँपकी भाँति, काल करवाल ( कठिन तलवार ) से सुरक्षित होकर उसका राज्य, निधानके
समान, अन्यों ( शत्रुओं )का भोग न हो सका। [२५] सौभाग्यसे प्रकाशमान उस राजाका कर (१ हाथ; और २ मालगुजारी) सर्वथा अनुपभोग्य
ऐसी परस्त्री पर और ब्राह्मणोंको प्रदान की हुई भूमिपर, कभी नहीं पड़ा। ३२) सं० १०६६ से लेकर ११ साल ६ महीने तक श्री दुर्लभ राज ने राज्य किया। इस राजा
दुर्ल भ ने पत्त न में 'दुर्लभ सर' नामक सरोवर बनवाया । [२६] फिर, उसके भाईका लड़का 'भीम' नामक राजा हुआ जिसकी प्रवृत्ति तीना जगदको
अभीष्ट फल देनेवाली हुई।
[ यहाँ A आदर्शका अनुसरण करनेवाली मुद्रित पुस्तकमें, यह समय-सूचक पाठ इस प्रकार है-]
[ इसके बाद सं० १५० (१ १०५२) श्रावण सुदी ११ शुक्रवारको पुष्य नक्षत्र और वृष लग्नमें श्री चा मुण्ड राज का राज्यारोहण हुआ। इसने पत्त न में चन्द्र नाथ दे व और चा चि णे श्वर के मन्दिर बनाये।
सं० ५५ ( ? १०६५) आश्विन सुदी ५से लेकर १३ वर्ष १ मास २४ दिन राज्य किया। __ सं० १०५५ ( ? १०६५) आश्विन शुदी ६ मंगळवार, ज्येष्ठा नक्षत्र, मिथुन लग्नमें श्री वल्लभ राज दे व गद्दी पर बैठा।
इस राजाने जब मा ल वा देशकी धारा नगरी के प्राकार (किलेको) घेर रक्खा था उसी समय शीली रोगसे इसकी मृत्यु हुई। इसके दो बिरुद थे-राज म द न शं कर' (राजारूपी कामदेवके लिये शिव) और ' ज ग ज्झ म्प न ' । सं० १० (? १०६६) चैत्र सुदी ५ से लेकर ५ महीने २९ दिन तक इस राजाने राज्य किया।
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