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प्रकरण १२ ] विक्रमार्कराजाका प्रबन्ध
[११ १२) एक बार, आयुके अन्तमें विक्रमादित्य का शरीर कुछ कमजोर हुआ तो एक वैद्यने उपदेश दिया कि, कौवेका मांस खानेसे रोगकी शान्ति होगी। जब राजा उसे पकवाने लगा तो इससे वैद्यने राजाका प्रकृति-व्यत्यय देखकर कहा-इस समय धर्मोषध ही बलवान है । क्यों कि प्रकृतिकी विकृति होनेसे उत्पात होता है। जीवनके लोभसे लोकोत्तर सत्त्व-प्रकृतिका त्याग करके काकमांस खाकर आप किसी तरह भी न जियेंगे । वैद्यके ऐसा कहनेपर उसको 'परमार्थबान्धव' कह कर राजाने उसकी प्रशंसा की और पारितोषिक देनेके लिये कहा। फिर और हाथी, घोड़ा, कोश इत्यादि सर्वस्व याचकोंको देकर, राजपुरुषों और नागरिकोंसे विदा लेकर, धवल गृहके किसी निर्जन प्रान्तमें तत्कालोचित दान और देव-पूजन करके कुशासनपर बैठ गया और सोच ही रहा था कि ब्रह्मद्वारसे प्राणों को निकाल दूं; अकस्मात् आविर्भूत अप्सराओंके समूहको देखा । राजाने हाथ जोड़कर प्रणाम करके उनसे पूछा कि-' तुम लोग कौन है ?' इस पर अप्सराओंने कहा कि-विस्तारके साथ कुछ कहनेका यह अवसर नहीं है। हम तो बिदा लेनेके लिये ही यहां आई हैं। इस प्रकार कहकर जाती हुई अप्सराओंसे राजाने फिर कहा- नवीन ब्रह्माने आप लोगोंको एक अद्वितीय रूप दे कर बनाया है। फिर भी जानना चाहता हूं कि, यह अद्वितीय रूप नासिकाहीन क्यों है ? ' इस पर वे ताली बजाकर हँसती हुई बोलीं-' अपने ही अपराधको हमारे ऊपर डाल रहे हो ?' ऐसा कह कर वे चुप हो गईं । तब राजाने कहा-आप लोग तो स्वर्ग लोकमें रहती हैं। आपके ऊपर मेरे अपराधकी सम्भावना कैसे हो सकती है ? इस तरह राजाका वचन समाप्त होनेपर उनमें की मुख्य सुमुखीने कहा-'हे राजन् , पूर्वतन पुण्यके प्रभावसे नव निधियोंने तुम्हारे महलमें अवतार ग्रहण किया था, हम लोग उन्हींकी अधिष्ठात्री देवतायें हैं। आपने जन्मसे महादान देते हुए भी एक ही निधिमेंसे इतना ही मात्र दिया है कि जिससे आप नासाग्र देख नहीं सकते । ' इस प्रकारका उनका कथन सुनकर हाथसे सिर ठोकते हुए राजाने कहा कि यदि मैं जानता कि नव निधियां अवतीर्ण हुई हैं तो उन्हें नौ ही पुरुषोंको दे देता । दैवने अज्ञान भावसे मुझे वश्चित किया ।' उसके ऐसा कहते समय उन्होंने यह कह कर आश्वासित किया, कि-कलियुगमें तो आप ही एकमात्र उदार हैं। और वह परलोक प्राप्त हुआ । उसी दिनसे उस विक्रमा दित्य का संवत्सर प्रवृत्त हुआ जो आज भी जगत्में वर्तमान है।
॥ श्रीविक्रमादित्यके दान विषयक ये विविध प्रबंध पूरे हुए ॥
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