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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा 多多多多多多多多多多多多多多多多多字***麥麥麥本來平安本來來來來來來李李李李*本 सूत्र" और तिर्छ लोक सम्बन्धी “जीवाभिगम' सूत्र में मिलता है, जो भाई सामान्य बुद्धि वाले या गुरु गम बिना इन प्रकरणों को देखता है वह प्रायः भ्रम में पड़ जाता है, तथा मूर्ति-पूजक लोग भी ऐसे प्रकरणों को लेकर जनता में भ्रम फैलाया करते हैं। श्री ज्ञानसुन्दरजी ने अपने "मूर्ति-पूजा के प्राचीन इतिहास के प्रकरण ३ में शाश्वती मूर्तियों का वर्णन कर सूर्याभदेव की मूर्ति-पूजा का प्रमाण दिया है" और इस प्रकार मूर्ति-पूजा में धर्म होने और मूर्ति-पूजा भगवदाज्ञा युक्त होने पर जोर दिया है, किन्तु जो लोग समझदार हैं जिन्होंने गुरुओं के समीप सूत्रों का स्वाध्याय कर उनकी वास्तविकता को समझ लिया है? वे कभी भी इनके चक्कर में नहीं आते, यहाँ हम इसी विषय में कुछ विचार करते हैं। . श्री ज्ञानसुंदरजी के कथन में विचारणीय केवल तीन बाते हैं। १. देवलोक स्थित प्रतिमायें तीर्थंकरों की है। २. सूर्याभदेव ने मूर्ति पूजा की, इसलिए सभी को करना चाहिये। ३. मूर्तिपूजा जिनाज्ञा युक्त धर्मकरणी है। खास कर इन तीन बातों पर ही मतभेद है, यहाँ हम इन तीनों विषयों पर पृथक् २ विचार करते हैं। (१) देवलोक की प्रतिमाएं तीर्थंकर प्रतिमा नहीं है देवलोक की प्रतिमायें केवल “जिन प्रतिमायें" कहलाने से ही तीर्थंकर प्रतिमायें नहीं हो सकती, क्योंकि जिन शब्द के अनेक अर्थ हैं। आचार्यों और ग्रन्थकारों ने इतने अर्थ तो मान्य किये हैं। (१) (हिन्दी विश्वकोष पृ० ३०६ अष्टम भाग) Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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