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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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४८. सुन्दर मित्र ने प्रायः असत्य पक्षपात तथा निंदकपन से ही काम लिया है। तटस्थता से नहीं ।
मैं अपनी जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा नामक पुस्तक के पूर्वार्द्ध को पूर्ण करते हुए पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे निष्पक्ष दृष्टि से विचार करें। पुस्तक के प्रमाणों को देखें, युक्तियों को परखें। यदि पाठकों ने मेरे निवेदन पर ध्यान दिया तो यह स्पष्ट ज्ञान होगा कि सुन्दर मित्र के ग्रन्थ की असत्यता तथा मूर्ति पूजा के सिद्धान्त की अनुपादेयता सहज ही बुद्धि गम्य है ।
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सुन्दर मित्र के मूर्ति पूजा विषयक प्रश्नोत्तर नामक प्रकरण का सचोट उत्तर इस पुस्तक के उत्तरार्द्ध में देने का प्रयत्न करूँगा । यदि पाठकों का सहयोग हुआ और साधनों की अनुकूलता हुई तो शीघ्र ही द्वितीय भाग भी पाठकों के करकमलों में लगभग इसी आकार में समर्पित करने का प्रयत्न करूँगा। जिससे पाठक जान सकेंगे कि सुन्दर मित्र के तर्क कितने भद्दे और छल कपट पूर्ण हैं |
॥ समाप्त ॥
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