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[33] ******************************************** पश्चाताप-अंतःकरण नी आलोचना माटे श्रीमान् “कलापी" स्वरुंज कहे छे के -
"हा? पस्तावो विपुल झरj, स्वर्ग थी उतर्यु छ। पापी तेमां डुबकी दई ने, पुण्यशाली बने छ। अहो! केवू स्मरण मधुरं, पाप, ए धरे छ। माफी पाम्युं कुदरत कने, एम मानी गले छे। । राज्यो थी के जुलमवती के, दण्ड थी ना बने छ। ते पस्तावो सहज वहता, कार्य साधी शके छे। हुं पस्तायो प्रभु! प्रणयी ए माफी आपी मने छ। हुँ पस्तायो मुज हृदय नी, पूर्ण माफी मली छे।"
आवो परम पवित्र पश्चात्ताप ए परमात्मा-अनन्त ज्ञानी परमात्मानी साक्षीए होई शके, के जेओ पश्चात्ताप ना शुद्ध स्वरूपने यथार्थ रूपे समजी शके एवा-सर्वज्ञ प्रभुनी हाजरी ना अभावे कदाच कोई वर्तमान काले जेओ शास्त्रज्ञ होय, हृदयना उदार अने सरल होय, जेओ शास्त्रानुसार वर्तन करनार होय तेवानी साक्षीए आलोयणा करवानी होय, अने तेमना अभावे कोई समभावो उदारचित्त संघनी साक्षीए आलोयणा थई शके। परन्तु जे जड़ पदार्थ छे, जेने मन संकल्प विकल्प जेवी वस्तुपण नथी, जेनेज्ञान दर्शन पण नथी तेनी साक्षी होइज शु शके? साक्षीने पोताने पोतानुं ज्ञान भान नथी तेवा खरे खर जड़ पदार्थनी साक्षीए आलोयणा नज होई शके। कोई पण जैनागम मां प्रतिमा जीनी साक्षी आलोयणा माटे कही होय तेवू जाणवामां नथी। जैनेत्तर समाज के जड़पूजा मां घणा वखत थया मानतो आवेछे ते समाज मां पण कोई गुन्हेगार ने गुन्हा नी कबूलात कराववी होय त्यारे तेमना पूज्य देवनी मूर्ति समक्ष लावीने सोगन खवरावे छे, पण ते वखते पण ते ज्ञातिना
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