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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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उक्त पच्चीस बातों में धर्म के सभी विषय आ गये हैं, इनमें से किसी एक में भी मूर्ति पूजा को अणुमात्र भी स्थान नहीं है। फिर मूर्ति पूजा को आगम सम्मत और प्रभु महावीर को उसके समर्थक कहने वाले कहाँ तक सच्चे हैं? ___ पाठक समझ गये होंगे कि जैनागमों से मूर्ति पूजा का सम्बन्ध “न तीन में न तेरह में' वाली कहावत के अनुसार ही है।
_ अब हम मूर्ति पूजक समाज के मान्य ग्रन्थों के प्रमाण पाठकों के सामने पेश करेंगे जिससे तत्त्व निर्णय में सुविधा हो सके।
मूर्ति पूजक मान्य प्रमाणों से मूर्ति पूजा का विरोध
यद्यपि मूर्ति पूजक समाज के ग्रन्थकारों ने मूर्ति पूजा के विधान और समर्थन में ग्रन्थ के ग्रन्थ भर डाले हैं। कथा ग्रन्थों में भी इसकी भरमार करदी है, किन्तु फिर भी किसी किसी विद्वान् ने कभी कभी नूर्ति पूजा की निरर्थकता देखकर दबी जबान से भी विरोध तो किया है। जिसके खास खास प्रमाण यहाँ दिये जाते हैं, पाठक ध्यान पूर्वक पढ़ें।
(१) महानिशीथ * सूत्र के कुशील नामक अध्ययन में इस प्रकार का उल्लेख है कि -
* इस महानिशीथ सूत्र का नाम नन्दीसूत्र में है अतएव यह समस्त श्वेताम्बर जैन समाज का मान्य होना चाहिए। किन्तु चैत्यवाद के समय इस सूत्र में भी परिवर्तन कर दिया गया। इस शास्त्र में कुछ आगम विरोधी अंश भी धुस गया। इसीलिए स्थानकवासी समाज वर्तमान में महानिशीथ को सम्पूर्ण रूप से मान्य नहीं करती। स्वयं महानिशीथ सूत्र से ही यह बात सिद्ध होती है तथा मूर्तिपूजक का०--से प्रकाशित जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास पृ० ७६ में लिखा है कि -
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