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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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स्थान के उदाहरण को गृहस्थधर्म पर घटाया और श्रावकों के लिए चार प्रकार के विश्राम स्थान बताये यथा १ सामायिक २ देशावकासिक ३ पौषध और ४ प्रत्याख्यान । इन चार प्रकार के विश्रांति रूप धर्म स्थानों में मंदिर मूर्ति को विश्राम स्थान नहीं बताया। जबकि उदाहरण में नागकुमारादि के मन्दिर का उल्लेख है। अतएव स्पष्ट सिद्ध है कि मन्दिर मूर्ति गृहस्थ धर्म से बहिष्कृत ही है। इसीसे दृष्टांत के मन्दिर को दान्त रूप गृहस्थधर्म के निरूपण से सर्वथा बहिष्कृत रखा गया ।
(१२) पाँचवें स्थान में धर्मियों के लिए पांच अवलम्बन में १ षट्काय २ गच्छ ३ राजा ४ गाथापति और ५ शरीर अवलंबन बताये, किन्तु मन्दिर मूर्ति नहीं ।
(१३) दस प्रकार के श्रमणधर्म में मूर्ति पूजा को तिल भर भी स्थान नहीं है ।
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(१४) दस प्रकार की समाधि में भी मूर्ति के दर्शन नहीं होते । (१५) दस प्रकार की वैयावृत्य में मूर्ति की वैयावृत्य का नाम तक नहीं है ।
(१६) तेतीस प्रकार की आशातनाओं में मूर्ति या मन्दिर की आशातना स्वीकार नहीं की गई, यहाँ भी मूर्ति बहिष्कृत ही ठहरी ।
(१७) उत्तराध्ययन सूत्र में आत्मोत्थान रूप ७३ क्रियाओं का फल निर्देश किया गया है। उसमें मूर्ति पूजा के फल का नाम तक नहीं है। इस पर से भी यह बहिष्कृत ही ठहरी है।
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(१८) हजारों मुनि महात्माओं के चरित्रों में से किसी एक में भी मन्दिर मूर्ति का उल्लेख नहीं है । अतएव सिद्ध हुआ कि आत्मकल्याण में इसकी तनिक भी आवश्यकता नहीं है।
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