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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा २६६ **************************************** मित्रवर! विवादग्रस्त विषयों की चर्चा हो वहाँ इन टीकाओं (मूलाशय रहित की गई व्याख्याओं) का प्रमाण कुछ भी महत्त्व नहीं रखता, जिसका कारण ऊपर बता दिया गया है। अतएव टीका आदि को मानने न मानने पर व्यर्थ की चर्चा उठाना तथा टीका आदि को अक्षरश: सत्य मानने या मनवाने का हठ करना अन्ध विश्वासी अल्पज्ञों का काम है। सुज्ञ लोग मूलस्पर्शी टीकाओं या नियुक्त्यादि को अवश्य मानते हैं किन्तु टीकाओं को मूल की तरह अक्षरशः सत्य या मान्य कभी स्वीकार नहीं करते। (३८) मूर्ति पूजा विषयक ग्रन्थों की अप्रामाणिकता गत प्रकरण में हमने टीका आदि के प्रमाणों पर विचार किया, यहाँ मूर्ति पूजा के समर्थक ग्रन्थों को प्रामाणिकता के विषय में कुछ प्रयत्न करते हैं, क्योंकि सुन्दर मित्र ने इसी दूसरे प्रकरण पृ० २३ में यह लिखा है कि - “आगमों के अतिरिक्त जैनाचार्यों ने अन्य अनेक विषयों पर पर्याप्त संख्या में ग्रन्थों की रचना की है, यह रचनाकार्य भी स्वमति से नहीं, अपितु जैनागमों के आधार पर ही किया गया है। जिस तरह किसी विशाल भवन के टूटने पर समझदार मनुष्य उसकी सामग्री से अन्य अनेक छोटे बड़े मकान बना डालते हैं उसी तरह जब हमारा दृष्टिवादाङ्ग रूपी विशाल भवन टूटने लगा तब उसका मसाला लेकर तात्कालिक आचार्यों ने अनेक छोटे बड़े ग्रन्थ बनाने में अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया.....उन्होंने विधि विधानादि के ग्रन्थों की भी रचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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