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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा २६३ ****************************************** सुन्दर मित्र प्रतिज्ञा तो करते हैं “स्थानकवासी समाज के मान्य ३२ सूत्रों के पाठ से मूर्ति पूजा सिद्ध करने की, और प्रमाण दे रहे हैं, अपने ही आकाओं के कल्पना कहानियों से ओत प्रोत ऐसे सूत्र विरुद्ध साहित्य के, या अनर्थ कर अथवा गपोड़े मारकर अपना उल्लु सीधा करना चाहते हैं। किन्तु इन्हें मिथ्या प्रयत्न में समाज के द्रव्य को नाशकर मिथ्यात्व और फूट फैलाते हुए जरा परभव से भी डरना चाहिये। __ बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस वस्तु का एकदम अभाव है, उसका सद्भाव प्रमाणित करने का मिथ्या प्रपञ्च करने में लोग भी सहायक हो जाते हैं, और अपने द्रव्य तथा सामाजिक शान्ति का नाशकर असत् को सत् ठहराने की चेष्टा करते हैं, यहाँ हम सुन्दर मित्र को अधिक कुछ नहीं कहते (क्योंकि जिन्हें अभाव में भी सद्भाव दीखता हो उन्हें क्या कहना?) विचारक पाठकों से निवेदन करते हैं कि वे सुन्दर मित्र के बताये हुए आगमों और प्रमाणों के प्रामाणिकता की जाँच करें जिससे सत्य वस्तु को समझने में सरलता हो। यदि कोई भाई इतना भी नहीं कर सके तो मूर्ति पूजक समाज के प्रतिभाशाली विद्वान् पं० बेचरदासजी के इस विषय में निम्न हृदयोद्गार ही पढ़कर निर्णय करलें। “हुं हिम्मत पूर्वक कही शकुं छउं के में साधुओं तेम श्रावकों माटे देव दर्शन के देव पूजन नुं विधान कोई अंग सूत्रों मां जोयुं नथीवाच्यु नथी, एटलुंज नहिं पण भगवती विगेरे सूत्रों मां केटलाक श्रावकोंनी कथाओं आवे छे तेमा तेओनी चर्यानी पण नोंध छे परन्तु तेमां एक पण शब्द एवो जणातो न थी के जे उपर थी आपणे आपणी उभी करेली देव पूजननी अने तदाश्रित देव द्रव्यनी मान्यता ने टकावी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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