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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ०५३ ******年*************************辛宋***** है, हम ही क्या आप ही का समाज के विद्वान् ऐसा कहते हैं, देखिये- "जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानि।" ___अन्त में आपने प्रो० हॉर्नल साहब के नाम से एक प्रमाण पेश किया है किन्तु यहाँ तो आपने डंके की चोट से अपनी अज्ञता जाहिर कर दी, क्योंकि आपके इस प्रमाण में तो यही बताया है कि -
“इस नामवाली जगह में बगीचा या उद्यान का समावेश होता है। उसी के अन्दर एक मन्दिर होता है और साथ में कई एक कोठरियां होती हैं जिनमें साधुओं का निवास होता है इसके उपरान्त कहीं-कहीं स्तूप या समाधिस्तंभ भी होता है, उस समग्र स्थान को चैत्य के नाम से ठीक ही विभूषित किया जाता है।" __यह प्रमाण तो औपपातिक सूत्र के पूर्ण भद्र चैत्य के वर्णन से मिलता जुलता है, इसमें हमारी और से कब बाधा उपस्थित हुई? फिर इस प्रमाण के देने से लाभ ही क्या हुआ?
मित्रवर! व्यर्थ उद्योग तो एक मूर्ख भी नहीं करता फिर आपने इस प्रमाण को पेश करके क्यों व्यर्थ कष्ट उठाया? क्या इस प्रमाण से आपका अभीष्ट सिद्ध हो गया? इसमें तो जिन मन्दिर या जिन मूर्ति का नाम निशान भी नहीं है, यह तो व्यंतरायतन अर्थ को ही पुष्ट करता है, फिर खाली प्रमाण संख्या बढ़ा कर “हमने इतने प्रमाण दिये' इस तरह भोले भक्तों को क्या भरमाते हो?
सुन्दर मित्र ने चैत्य शब्द का अर्थ ज्ञान और साधु होने का खंडन करके कुछ अनुपयोगी तर्क भी कर डाले हैं, इसलिए इस विषय में प्राप्त प्रमाण देकर फिर इनके तर्कों पर विचार करेंगे।
अरिहंत चैत्य (या चैत्य) शब्द का अरिहंत सम्बन्धी स्मारक विशेष अर्थ हमारे मूर्ति पूजक भाई भी मानते हैं, किन्तु कितने ही
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