________________
[27]
*********
एथी प्रतिमानुं पूजन करवानु कई रीते सिद्ध थाय छे? शुं जिनेश्वर देव के जे वर्तमान काले भरत क्षेत्र मां देहधारी नथी, पण जे जे तीर्थंकर देवनुं स्मरण थाय छे ते सर्व सिद्ध थयेल छे, ते प्रभु तेमनी प्रतिमानी अन्दर आवी विराजता हशे ? के जेथी देवनी आशातना करवाथी जेम हाथाय तेम तीर्थंकर देवनी प्रतिमा पूजवा थी कल्याण थाय?
सिद्ध परमात्मा अशरीरी छे, तेओ शाश्वत छे एटले त्यांथी पोते आवता नथी, तमेज तेमना प्रतिनिधि तरीके कोईने मोकलता नथी के जे प्रतिमाजी मां आवी वासो करी तेने पूजनारनुं ते कांई पण हित करीशके के कर्मक्षय मां मददगार थई शके ?
अफीण के सोमल खावाथी माणस मरी जाय छे, पण अफीण न खावाथी के पूजा-भक्ति करवाथी मनुष्यने अमरत्व प्राप्त तुं नथी, एवात तो सामान्य बुद्धि नो मनुष्य पण समजी शके तेम छे, टुंका मां देवाणं आसायणाए नो प्रतिपादन करी प्रतिमा पूजन सिद्ध करवा प्रयत्न करवो व्यर्थ प्रयत्न छे, एम समजाय छे।
२० प्रकारे तीर्थंकर नाम कर्म
हर कोई प्रकारे अबुध जनोने प्रतिमाजी ना पूजननुं ठसाववानुज ज्यां मानस छे त्यां पोतानी दलील के पुरावो वास्तविक छे के केम? ते पण भूली जवाय छे, एनो प्रत्यक्ष पुरावो २० प्रकारे तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन मां अरिहंतादि ७ ना अरिहंत, सिद्ध प्रवचन ( तीर्थंकर देव कथित शास्त्रो नु बहुमान पणु) गुरु, स्थविर बहु सूत्री, अने तपस्वी, ए सातना गुणग्राम-स्तुति करतां तेमां जो तदाकार वृत्ति थाय तो अनेक प्रकारना कर्मनी वर्गणाओ कर्मना दलियाओने उडाडी मुकी तीर्थंकर पदवीना अधिकारी बनी शकाय छे, अने ए बात तो सहु कोई समजी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org