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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा २३१ **********************************学学 शास्त्रों को तो प्रमाण भूत मानते ही हैं। श्वेताम्बर जैन समाज के बड़ेबड़े दो फिरकों (साधुमार्गी और मूर्ति पूजक) में मूल ३२ सूत्रों में तो एकसी मान्यता है, किन्तु मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में इसके सिवाय और भी सूत्र ग्रन्थ और इन पर किये हुए भाष्य, टीका, नियुक्ति आदि को भी प्रमाण रूप स्वीकार किया गया है।
जो समाज शास्त्रों को प्रमाण रूप में स्वीकार करता है, उसके सामने वैसे प्रमाण नहीं देकर व्यर्थ खींचतान करना न्याय संगत नहीं है। ___ श्वेताम्बर मूर्ति पूजक लोग साधुमार्गियों के सामने आगम प्रमाण नहीं रखकर मूर्तियों की प्राचीनता को बताकर इससे आत्म-कल्याणार्थ मूर्ति पूजा करने का सिद्ध करना चाहे, यह कहाँ तक ठीक है? हाँ यदि इन मूर्तियों को प्राचीन स्मारक या शिल्पकला का नमूना ही कहें तब तो कोई हानि नहीं, किन्तु इनको ही पूजने पूजाने की अनावश्यक क्रियायें कर उसमें ही धर्म मानना और मनवाना यह आगम विरुद्ध और हठधर्मी ही है।
१. जबकि वर्तमान समय में आचार विधान को स्पष्टतया बताने वाले सर्वज्ञ प्रणीत और गणधरादि से निर्मित, सूत्र के सूत्र मौजूद हैं, जिसमें आत्म-कल्याण का अनुपम मार्ग दिखाया गया है उनमें मूर्ति पूजा के लिए एक अक्षर भी नहीं है, तब मूर्ति पूजा में धर्म कहने वाले कहाँ तक सच्चे हैं? किस बल पर मूर्ति पूजा महावीर भाषित कही जाती है?
२. जबकि चरितानुयोग (जीवन चरित्र विभाग) में सैकड़ों मुनि महात्माओं की जीवनचर्या बताई गई है। वैसे ही अनेक आदर्श श्रमणोपासकों के जीवन इतिहास लिखे हुए हैं, उन सबमें से किसी एक में भी मूर्ति पूजने, मन्दिर बनवाने, यात्रार्थ संघ निकालने आदि विषयक बिन्दु विसर्ग तक नहीं है, फिर यह कैसे कहा जाता है कि मूर्ति पूजा से अनेकों का कल्याण हुआ? इसे आगम सम्मत कहने
वाले क्या उत्सूत्र भाषी नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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